सहिष्णुता और भारत

सहिष्णुता और भारत

सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना. व्यापक अर्थ में सहिष्णुता का अर्थ है अपना आचरण इस प्रकार रखना जिससे दूसरों को कष्ट ना हो. यहाँ कष्ट से आशय दैहिक तथा मानसिक दोनों प्रकार के कष्टों से है. 
सहिष्णुता हमें सिखाती है कि दूसरों की भावनाओं उनके विचारों का सम्मान किया जाए. 

भारत की भूमि शताब्दियों से विभिन्न विचारधाराओं की जननी रही है. यहाँ वात्स्यायन के कामसूत्र को स्वीकृति मिली है तो वेदव्यास के वेदांतसूत्र को भी लोगों ने सम्मान दिया है. जहाँ निराकार ब्रह्म की अवधारणा है तो साकार रुप में बहुदेवों के पूजन की भी प्रथा रही है. 
सनातन धर्म के अतिरिक्त यहाँ बौद्ध, जैन तथा सिख धर्म का जन्म हुआ है. 
ईसाई धर्म भारत में सदियों पुराना है. कई यूरोपीय देशों में इसका प्रसार होने से पहले भारत में इसका आगमन हुआ. भारत में हिंदू धर्म के बाद इस्लाम ऐसा धर्म है जिसके मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है. यहूदी, पारसी तथा बहाई धर्म के लोगों को मानने वाले लोग भी इस देश में पाए जाते हैं. 


हमारी कई परंपराएं रीति रिवाज़ हमारी सांझी विरासत की देन हैं. विभिन्नता को आत्मसात करने की हमारी योग्यता हमारे दर्शन, संगीत, कला, लेखन तथा भवन निर्माण में झलकती है. 
एकं स्वदिप्रा बहुधा वदंति की विचारधारा वाले इस राष्ट्र के पास विभिन्न संप्रदायों को स्वीकार करने की उदारता है. सहिष्णुता इस भूमि पर आरोपित सिद्धांत नही है. वह इस समाज की आत्मा है. आत्मा से विहीन शरीर शव होता है. शव विकास नहीं करता. वह नष्ट होता है.
जैसे अग्नि की पहचान प्रकाश तथा ऊष्मा है. इससे पृथक अग्नि का कोई अस्तित्व नही. वैसे ही विभिन्नता में एकता के दर्शन करना तथा सहिष्णुता ही हमारे अस्तित्व का आधार है. इससे विलग होकर हम विश्व प्रसिद्ध अपनी अनूठी पहचान को खो देंगे. 
वतर्तमान में छिड़ी सहिष्णुता और असहिष्णुता की बहस में ना पड़ कर हमको सिर्फ यह ध्यान रखना चाहिए कि ना तो सहिष्णुता की इस भूमि में कोई कमी थी और ना ही होनी चाहिए. अपने सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत का त्याग कर हम केवल अपनी पहचान ही खोएंगे.


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

यादें

छू लिया आकाश