पारिवारिक सौहार्द
मानव समाज में पारिवारिक इकाई के अंतर्गत बच्चे युवा एवं बुजुर्ग तीन पीढ़ियों के लोग आते हैं। इन तीनों पीढ़ियों में आयु के अंतर के कारण सोंच में भी अंतर होता है। अक्सर सोंच का यह अंतर आपसी टकराव का कारण बन जाता है। सोंच में अंतर स्वाभाविक है। हर समय का अपना एक सामजिक परिवेश होता है। जो हर पीढ़ी में एक नई सोंच को जन्म देता है। विचारों में परिवर्तन आवश्यक भी है क्योंकि जिस समाज में परिवर्तन नहीं आता वहां ठहराव की स्तिथि पैदा हो जाती है। समाज बहती धारा की तरह होना चाहिए जिसमे समय के साथ साथ बदलाव आते रहे नहीं तो समाज मृतवत हो जाता है। परिवर्तन किसी समाज के जीवित होने की निशानी है। अतः विचारों का अंतर तो ठीक है किन्तु उसके कारण उपजने वाले मतभेद जो मनमुटाव का कारण बन जाते हैं चिंता का विषय हैं। आखिर ऐसी स्तिथि आती क्यों है। इसका कारण है एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास न करना। बुजुर्गों को शिकायत रहती है की नई पीढ़ी गैरजिम्मेंदार एवं आत्म केन्द्रित है। उन्हें दूसरों की भावनाओं की कद्र ही नहीं। दूसरी तरफ युवाओं का कहना है की बुजुर्गों की सोंच दकियानूसी है। वो हमारे नज़रिए को स