मजदूर से सरपंच तक का सफर
यह दुनिया बहुत ही अद्भुत है. यहाँ अक्सर ही ऐसा देखने या सुनने को मिलता है जो हमें चौंका देता है. अक्सर हम देखते हैं कि लोग हालातों के से हार मान लेते हैं. अन्याय के साथ समझौता कर लेते हैं. किंतु इन्हीं के बीच से अक्सर ऐसे लोग उभर कर आते हैं जो हालात के आगे घुटने टेकने की बजाय उसे बदल देते हैं. अन्याय का शिकार बनने की बजाय उसके खिलाफ आवाज उठाते हैं. राजस्थान अजमेर के किशनगढ़ तहसील के हरमादा गांव की नौरोती देवी की कहानी भी ऐसे ही संघर्ष की कहानी है. दलित समाज में जन्मी नौरोती अशिक्षित एवं बेहद गरीब थीं. अपना पेट पालने के लिए वह सडंक निर्माण के लिए पत्थर तोड़ने का काम करती थीं. उन्होंने देखा कि उन लोगों को मिलने वाली मजदूरी में घपला किया जाता है. अतः अपने साथ के मजदूरों को संगठित कर उन्होंने इसके विरूद्ध आवाज उठाई. उनके इस संघर्ष में एक स्वयंसेवी संस्था भी उनके साथ जुड़ गई. मामला सुप्रीम कोर्ट गया. नौरोती देवी और अन्य मजदूर केस जीत गए. इस जीत ने नौरोती देवी को एक नया बल दिया. लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए शिक्षा एक उपयोगी हथियार है. अतः उन्हो