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जून, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मजदूर से सरपंच तक का सफर

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यह दुनिया बहुत ही अद्भुत है. यहाँ अक्सर ही ऐसा देखने या सुनने को मिलता है जो हमें चौंका देता है. अक्सर हम देखते हैं कि लोग हालातों के से हार मान लेते हैं. अन्याय के साथ समझौता कर लेते हैं. किंतु इन्हीं के बीच से अक्सर ऐसे लोग उभर कर आते हैं जो हालात के आगे घुटने टेकने की बजाय उसे बदल देते हैं. अन्याय का शिकार बनने की बजाय उसके खिलाफ आवाज उठाते हैं. राजस्थान अजमेर के किशनगढ़ तहसील के हरमादा गांव की नौरोती देवी की कहानी भी ऐसे ही संघर्ष की कहानी है. दलित समाज में जन्मी नौरोती अशिक्षित एवं बेहद गरीब थीं. अपना पेट पालने के लिए वह सडंक निर्माण के लिए पत्थर तोड़ने का काम करती थीं. उन्होंने देखा कि उन लोगों को मिलने वाली मजदूरी में घपला किया जाता है. अतः अपने साथ के मजदूरों को संगठित कर उन्होंने इसके विरूद्ध आवाज उठाई. उनके इस संघर्ष में एक स्वयंसेवी संस्था भी उनके साथ जुड़ गई. मामला सुप्रीम कोर्ट गया. नौरोती देवी और अन्य मजदूर केस जीत गए. इस जीत ने नौरोती देवी को एक नया बल दिया. लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए शिक्षा एक उपयोगी हथियार है. अतः उन्हो

चुनौतियां स्वयं को साबित करने का अवसर हैं

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. चुनौतियां जीवन का हिस्सा है. कुछ लोग इनसे घबरा जाते हैं तो कुछ इन्हें उस अवसर के तौर पर लेते हैं जो ईश्वर ने उन्हें स्वयं को सिद्ध करने के लिए प्रदान किया है. डॉ. आकृति बंसल उन लोगों में हैं जो चुनौतियों को अवसर के तौर पर स्वीकार करते हैं.इनके जीवन का सफर कठिनाइयों से भरपूर रहा लेकिन इन्होंने हार नही मानी. डॉक्टर बनने का अपना सपना पूरा किया. जब वह स्कूल में थीं अचानक ही वह चलते चलते गिर जाती थीं या इनके घुटने मुड़ने लगते थे. आरंभ में इन्होंने इसे कमज़ोरी समझ कर नज़रअंदाज किया. लेकिन जब समस्या बढ़ गई तो इनके माता पिता ने इन्हें डाक्टर को दिखाया. वह भी कुछ अधिक समझ नही पाए. ढॉक्टर ने इस आश्वासन के साथ कि कुछ ही समय में सब ठीक हो जाएगा कैल्शियम एवं विटामिन की गोलियां लिख दीं. किंतु कोई लाभ नही हुआ. किशोरावस्था में जब इनके साथी बढ़ रहे थे इनका शरीर दिनोंदिन कमज़ोर हो रहा था.  अपने आत्मविश्वास तथा परिवार के प्रेत्साहन से इन्होंने पढ़ाई जारी रखी. दसवीं की परीक्षा में इन्होंने अपने स्कूल में द्वितीय स्थान प्राप्त किया.  इसी बीच इनका परिवार चंडीगढ़ के करीब जिराकपुर में आकर बस ग

एक किशोरी की ऊर्जा एवं पर्यावरण संरक्षण की अनूठी पहल

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"छोटे छोटे प्रयासों से ही बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं"   यह मानना है अमेरिका में रहने वाली भारतीय मूल की मीरा वशिष्ठ का. इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए मीरा ने भारतीय सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना UJALA (Unnat Jyoti affordable LEDs for all) में अपना छोटा सा योगदान देने का प्रयास किया है. ऊर्जा संरक्षण एवं पर्यावरण के मद्देनजर भारतीय सरकार 77 करोड़.Incandescent bulbs को LED bulbs से बदलने की मुहिम चला रही है. इसके तहत सरकार 16 राज्यों में LED bulbs 75-90  रूपये की रियायती दर पर उपलब्ध करा रही है. लेकिन कई गरीब परिवारों के लिए यह दर भी पहुँच के बाहर है. अपने स्कूल प्रोजक्ट के दौरान मीरा को इस योजना तथा लोगों की इस समस्या का पता चला. उसने इस दिशा में कुछ करने का निश्चय किया. उसके माता पिता ने भी उसका पूर्ण समर्थन किया. पहले उसने अपने जेब खर्च से पैसे बचाकर इस काम के लिए देने का विचार किया किंतु उसे महसूस हुआ कि इससे पर्याप्त धन एकत्र नही हो पाएगा. अतः उसने लोगों की सहायता से धन जुटाने की योजना बनाई.  मीरा ने अलग अलग लोगों को तकरीबन 500 पत्र लिख कर सहायता देने का अनुरोध किया. प

सपना एक बेहतर दुनिया का

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उसके भीतर आज भी एक छोटी सी लड़की रहती है. जो अपने सपनों की दुनिया में खोई रहती है. जो लफ़्जों के जरिए अपनी भावनाओं अपने विचारों को व्यक्त करती है. वह एक स्वप्नदृष्टा है, एक चिंतक है, एक कवियत्री तथा एक लेखिका है. यह परिचय है दिशा छाबड़ा का. बचपन में दिशा बहुत शांत रहती थीं तथा अपनी किताबों में खोई रहती थीं. जीवन में कुछ बन कर वह अपनी माँ को खुशी देना चाहती थीं. आज IIM Calcutta की यह पूर्व छात्रा Paytm में Deputy General Manager के पद पर कार्यरत हैं. इसके अतिरिक्त दिशा दो बहुचर्चित पुस्तकों 'My Beloved's MBA Plans' एवं 'Because Life Is a Gift'   की लेखिका भी हैं.    अपने काम तथा लेखन के बीच वह अच्छा संतुलन बना कर रखती हैं. हलांकि यह कार्य आसान नही है. दोनों के बीच सामंजस्य बिठा पाना बहुत कठिन है. अक्सर वह दोनों के बीच उलझ जाती हैं. लेकिन अपने काम तथा लेखन दोनों से ही उन्हें बहुत प्रेम है. अतः सारी कठिनाइयों के बावजूद दोनो को साथ लेकर चल रही हैं. लेखन उनके लिए केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नही है बल्कि वह यह मानती हैं कि इसके ज़रिए समाज में एक ब

जिंदगी खूबसूरत है

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उतार चढ़ाव जीवन का हिस्सा हैं. कभी अच्छा वक्त होता है तो कभी आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. किंतु अक्सर ऐसा होता है कि जब हम पर कठिनाइयां आती हैं तो हम परेशान हो जाते हैं और शिकायत करने लगते हैं कि 'मैं ही क्यों'. लेकिन कुछ लोग परिस्थितियों को स्वीकार कर आगे बढ़ने के बारे में सोंचते हैं. ऐसे लोग जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोंण रखते हैं.   जीवन की कठिनाइयों से हार ना मानने वाले व्यक्ति हैं जस्टिन विजय येसुदास. हार ना मानने के अपने जज़्बे के कारण ही अपनी शारीरिक चुनौतियों के बावजूद वह जिंदादिल के साथ जीते हैं. जस्टिन Cognizant Technology Solutions में Deputy General Manager के पद पर कार्यरत हैं.  वह एक सामान्य जीवन जी रहे थे जब 2009 में एक दुर्घटना के शिकार हो गए. गर्दन के नीचे से उनका पूरा शरीर Paralyzed हो गया. केवल उनके कंधों तथा कोहनियों मे कुछ गतिविधि थी. बाकी सारा शरीर सुन्न हो गया था. इतने पर भी जस्टिन ने कोई शिकायत नही की बल्कि बड़े धैर्य के साथ अपनी स्थिति को स्वीकार किया.  जीवन में आगे बढ़ने के लिए उन्होंने स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया. इसके

हम हैं 'माहिर'

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समाज का एक बड़ा वर्ग शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. इनमें भी एक हिस्सा ऐसा है जिन्हें सही सुविधाएं नही मिल पाती हैं. सही शिक्षा व प्रशिक्षण नही मिल पाता है. अतः इस बात की आवश्यक्ता है कि इन लोगों को रोज़गार परक प्रशिक्षण दिया जाए ताकि यह लोग भी स्वावलंबी बन आत्मसम्मान के साथ सर उठा कर जी सकें.  'माहिर' एक ऐसा ही प्रयास है. महिर का संचालन 'We the people' संस्था द्वारा 'जनहित विकास संस्था' नामक NGO के साथ मिलकर किया जा रहा है.  'माहिर' पेशेवर समर्पित लोगों का एक दल है. इसके सभी सदस्यों को पिछड़े तथा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के साथ काम करने का गहन अनुभव है. 'माहिर' के अंतर्गत विकलांग जनों को प्रशिक्षण देने का काम किया जाता है. उन्हें लिफाफे, कागज़ के थैैले, सजावट का सामान, उपहार का सामान आदि बनाना सिखाया जाता है.  कुछ अन्य सहयोगी NGOs इन्हें उत्पादन करने तथा उत्पादित किए गए सामान को स्थानीय बाजार में बेंचने में  सहायता करते हैं.            'माहिर' से जुड़े लोग समाज के विभिन्न वर्गों तथा पेशों से संबंध रखते हैं. यह

'नारी शक्ति' का जीवांत उदाहरण

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नारी को शक्ति का रूप माना जाता है. उसके भीतर वह शक्तियां निहित हैं जो एक आदर्श परिवार एवं समाज का निर्माण कर सकती हैं. वर्तमान समय में नारी का कार्यक्षेत्र केवल घर तक ही सीमित नही है बल्कि आज वह समाज के निर्माण में भी उतनी ही सक्रिय है. उसका व्यक्तित्व अब बहु आयामी हे.  आधुनिक नारी के इसी बहु आयामी व्यक्तित्व का आदर्श रूप हैं श्रीमती सुमित्रा प्रसाद. सुमित्रा एक आदर्श गृहणी होने के साथ साथ एक जानी मानी समाजिक कार्यकर्ता, प्रेरक वक्ता, अच्छी परामर्शदाता तथा मीडिया कार्यकर्ता हैं.  सामाजिक सुधार के कार्य उनके लिए वह ज़रिया है जिसके द्वारा वह लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाकर उनके जीवन को सही दिशा दे सकती हैं. उनका मानना है कि समाज के लिए कुछ करने की चाह दिल से निकलती है. इसे किसी रोज़गार की तरह नही देखा जाना चाहिए. जब कोई अपने हृदय की पुकार पर समाज के लिए कुछ करता है तो उसे अपार संतुष्टि मिलती है.  सुमित्रा बचपन से ही कामगार समाज तथा मध्यमवर्गीय समाज की समस्या से परिचित थीं. कॉलेज में उन्होंने Psychology तथा Sociology   जैसे विषय अध्यन के लिए चुने जिन्होंने मानव समाज

एक नेत्रहीन व्यक्ति की वृहद 'दृष्टि'

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"वह व्यक्ति दयनीय होता है जो देख तो सकता है किंतु उसके पास दृष्टि नही." हेलेन केलर शारीरिक कमियों के साथ जन्म लेने का अर्थ यह नही कि वह व्यक्ति अयोग्य है. कुछ कर दिखाने के लिए धैर्य, साहस तथा सकारात्मक सोंच की आवश्यक्ता पड़ती है. जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास हो, चिंतन हो वह शारीरिक चुनौतियों के बावजूद भी समाज में अपना स्थान बना सकता है.  ऐसा ही कर दिखाया है श्रीकांत बोला ने जो आज Bollant Industries Pvt. Ltd .  नामक कंपनी के CEO हैं. इस कंपनी का व्यवसाय 50 करोड़ का है. यह कंपनी ना सिर्फ Eco Friendly उत्पादों का निर्माण करती है बल्कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है . श्रीकांत का यह कार्य सराहनीय है क्योंकि वह स्वयं जन्म से नेत्रहीन हैं. वह यह सफलता हासिल कर सके क्योंकी नेत्रहीन होते हुए भी उनके पास वह दृष्टि थी जिसके कारण वह जीवन का मूल्य समझ सके.  जन्म से नेत्रहीन जन्मे इस बालक को अयोग्य समझ कर गांव वालों ने इनके माता पिता को इनका जीवन समाप्त कर देने की सलाह दी ताकि उन्हें तथा श्रीकांत दोनों को कष्टों से मुक्ति मिल जाए. लेकि