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मुसीबतों से डरें नहीं तो जीत पक्की.....

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              मुसीबतों से डरें नहीं तो जीत पक्की..... जीवन में अक्सर विपरीत परिस्थितियां आकर हमारा रास्ता रोकने का प्रयास करती हैं। कुछ लोग इन विपरीत परिस्थितियों से हार मान कर चुपचाप बैठ जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जो इन विपरीत परिस्थितियों को चुनौती देते हैं। वह बिना डरे इनके पार जाकर संघर्ष का रास्ता अपनाते हैं।  जीत उन्हीं लोगों को मिलती है जो संघर्ष के रास्ते पर चलकर विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हैं।  गीता चौहान एक ऐसी ही मिसाल हैं। मात्र 6 साल की उम्र में वह पोलियो का शिकार हो गईं। उनकी चलने फिरने की शक्ति समाप्त हो गई। वह व्हीलचेयर पर आ गईं। परंतु उनका संघर्ष सिर्फ इतना ही नहीं था। ऐसी स्थिति में जब उन्हें अपने पिता के सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता थी तब उनके पिता ने उनका सहयोग करने से मना कर दिया। गीता पढ़ना चाहती थीं। शिक्षा ग्रहण कर स्वयं को योग्य बनाना चाहती थीं। किंतु उनके पिता चाहते थे कि वह घर पर रहें। उनका मानना था कि उनकी शारीरिक अक्षमता उनकी राह का रोड़ा है। पिता ने तो साथ नहीं दिया लेकिन गीता की माँ उनकी पढ़ने की ललक को भलीभांति समझती थीं। उन्होंने गीता की पढ़

कर दिखाना है.....

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कुछ बड़ा करना है तो ज़िद ठाननी पड़ती है। आने वाली तकलीफों से डरने की जगह उनका सामना करने की हिम्मत पैदा करनी पड़ती है। अगर आप ज़िद ठान लें कि कुछ कर दिखाना है तो परेशानियां आपको डराती नहीं हैं। ऐसी ही एक ज़िद ठानी हिंदुस्तान के पारा तैराक मोहम्मद शम्स आलम शेख ने। अपने हौसले से उन्होंने अपना नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में सबसे तेज़ पारा तैराक के रूप में दर्ज़ करा लिया। वैसे तो शम्स अपने नाम पहले ही कई रिकॉर्ड्स दर्ज़ करा चुके हैं।  पर जब शम्स पता चला कि इनके राज्य बिहार में मिश्रीलाल शीतकालीन तैराकी प्रतियोगिता होने वाली है तो इन्होंने उसमें हिस्सा लेकर कुछ कर दिखाने की ठानी। इनके स्विमिंग कोच शशांक कुमार ने  बताया कि हर साल मिश्रीलाल शीतकालीन तैराकी प्रतियोगिता गंगा नदी में होती है। जो कि 8 दिसंबर 2019 को होने वाली है । पटना में आयोजित इस प्रतियोगिता में तैराक को गंगा नदी में दो किलोमीटर की दूरी तैर कर पार करनी होती है। शम्स के मन में आया कि इस प्रतियोगिता में भाग लेकर कुछ कर दिखाया जाए। पर जब इनके कोच का फोन आया था तब दिसंबर की शुरुआत हो चुकी थी। समय बहुत कम था। पर मन म

मुझे उड़ान भरना ‌है

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                      मुझे उड़ान भरना ‌है मुश्किलें ‌लाख‌ रोड़े अटकाएं पर जिसमें हौसला है उसे ‌कोई भी नहीं रोक सकता है। वह तो हर मुश्किल के लिए खुद एक चुनौती बन जाता है।‌ यह बात मोहम्मद शम्स आलम शेख़ पर एकदम खरी उतरती है। शम्स को भी कठिनाइयों ने घेरने का प्रयास किया। पर इस लड़ाके ने अपनी हिम्मत से उस घेरे को ध्वस्त कर दिया। उस घेरे से वह एक विजेता के रूप में बाहर निकल कर आए। शम्स एक पैरा तैराक, प्रेरक वक्ता और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के अधिकारों के पक्षधर हैं। 17 जुलाई 1986 को बिहार के मधुबनी में जन्मे शम्स आलम का संबंध किसानों के परिवार से है। पर शम्स के नाना  अपने समय के माने हुए पहलवान थे। अपने नाना को मिलने वाली शोहरत और इज्ज़त से प्रभावित होकर शम्स भी खेलों की तरफ आकर्षित हुए। वह अपने गांव रातौस में तैराकी किया करते थे। छह साल की उम्र में शम्स पढ़ाई के सिलसिले में अपने भाई के साथ मुंबई चले गए। वहाँ जाने के बाद भी शम्स के अंदर का खिलाड़ी शांत नहीं हुआ। उन्होंने कराटे से अपना नाता जोड़ लिया। ‌कोच उमेश मुर्कर के निरीक्षण में इन्होंने विधिवत कराटे में प्रशिक्षण ‌लेना श