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अगस्त, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विरासत में हमें जो भारतीय गौरव पूर्ण धरोहर है वह अतुलनीय है

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मनुष्य जहाँ जाता है अपने साथ वहाँ अपनी धर्म और संस्कृति को भी ले जाता है. ज्ञान राजहंस जी भी ऐसे ही व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत से हजारों मील दूर कनाडा की धरती में भारतीय धर्म एवं दर्शन के बीज रोपित किए हैं. आपकी तपस्या के परिणाम स्वरूप वहाँ भी सनातन धर्म और दर्शन की जड़ें मजबूत हुई हैं. गत पैंतीस सालों से ज्ञान जी 'भजनावली' के नाम से प्रसारण के माध्यम से वैदिक संस्कृति का प्रचार कर रहे हैं. भजनावली एक गैर व्यवसायिक संस्था है. इसका आरंभ 1 अप्रैल 1981 को हुआ था. आरंभ में यह संस्था प्रत्येक रविवार को एक घंटे के रेडियो प्रसारण के माध्यम से वैदिक चिंतन से संबंधित सामग्री लोगों तक पहुँचाती थी. 1998 से 2006 तक यह प्रसारण वेबसाइट के माध्यम से इंटरनेट पर भी उपलब्ध रहता था. 2007 में रेडियो प्रसारण समाप्त कर 'Bhajnawali.com' नामक वेबसाइट के जरिए ही वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार किया जाता है. इस वेबसाइट पर वैदिक दर्शन व सिद्धांत से संबंधित पठनीय व श्रव्य सामग्री उपलब्ध है. वेबसाइट के संचालन की लागत प्राप्त दान की राशि से पूरी की जाती है. भजनावली की अनुसंशा Britannica encycl

संवेदनाओं के पंख

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साहित्य को नेत्रहीन व्यक्तियों तक पहुँचाने की अनोखी पहल है ब्लाग संवेदनाओं के पंख/ दिव्य दृष्टि. यहाँ पर लेखन की विभिन्न विधाओं जैसे आलेख, कहानी, लघुकथा तथा कविताओं को ऑडियो के रूप में परिवर्तित कर प्रकाशित किया जाता है. श्रव्य रूप में रचनाएं नेत्रहीनों तक सुगमता से पहुँच जाती हैं और वह इन रचनाओं का आनंद उठा सकते हैं. ब्लाग में हर आयु वर्ग से संबंधित रचनाओं को सम्मिलित किया जाता है. इसके ज़रिए श्रोताओं को साहित्यिक रचनाओं के साथ साथ  समसामायिक विषयों, ऐतिहासिक घटनाओं तथा फिल्म जगत से संबंधित मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक जानकारियां उपलब्ध कराई जाती हैं.  इस ब्लॉग की एक और विशेषता यह भी है कि इसे निरंतर अपडेट किया जाता है. जाने-पहचाने साहित्यकारों, कवियों, लेखकों की रचनाओं के 600 से अधिक ऑडियो का इसमें समावेश है. संवेदनाओं के पंख ब्लॉग का आरम्भ अगस्त 2007 में हुआ. अक्टूबर 2015 से इसमें दिव्य दृष्टि नाम जोड़कर नेत्रहीन लोगों के लिए ऑडियो शुरू किया गया. इस ब्लाग का संचालन डॉ. महेश परिमल एवं उनकी सहधर्मिणी श्रीमती भारती परिमल द्वारा किया जाता है. अधिकांशतः रचनाओं को आवाज़ देने का कार्य श्री

स्कूल आता है बच्चों के पास

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बांग्लादेश बाढ़ की समस्या से ग्रसित है. हर साल लाखों लोग बाढ़ के कारण अपने घरों से विस्थापित हो जाते हैं. ऐसे में उनका जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है. इसका सबसे अधिक असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है.  इस समस्या का अनूठा उपाय निकाला है बांग्लादेश के आर्किटेक्ट मोहम्मद रिज़वान ने. इन्होंने तैरते हुए स्कूल का निर्माण किया है जो 100 नावों पर चलाए जाते है. इन तैरते स्कूलों में पुस्तकालय, कंप्यूटर एवं स्वास्थ संबंधी सुविधाएं उपलब्ध हैं.  बाढ़ के दिनों में ये तैरते स्कूल बच्चों को घर से लेते हैं तथा स्कूल पूरा होने पर वापस घर छोड़ देते हैं. बच्चों की पढ़ाई नाव पर संचालित कक्षा में होती है जिसमें 30 विद्यार्थियों के बैठने की व्यवस्था है.  यह नावें सौर्य ऊर्जा से संचालित होती हैं. इन पर प्रकाश की व्यवस्था भी सौर्य ऊर्जा से ही होती है. प्रोजक्ट की लागत विभिन्न संस्थाओं से प्राप्त वित्तीय मदद से होता है. यह बदलते पर्यावरण से उत्पन्न समस्या का सामना करने का एक सकारात्मक तरीका है.  यह प्रोजक्ट सिधुलाई स्वानिर्वार संघष्टा नामक संघ द्वारा चलाया जा रहा है. इसका प्रतिनिधित्व मोहम्मद रिज़वान करते है

अनुभूतियों को शब्दों का जामा पहनाता हूँ

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राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलाना तथा उसे कार्यकारी भाषा बनाना डॉ. भोज कुमार मुखी के जीवन का प्रमुख उद्देश्य रहा है. देना बैंक में अपने 33 वर्षों के कार्यकाल में हिंदी भाषा को लागू करने का सराहनीय कार्य किया. बैंक की  शाखाओं के प्रशासनिक कार्यालय तथा क्षेत्रीय कार्यालय को राजभाषा कार्यान्वयन के लिए प्रेरित करने के लिए 5 बार प्रधान कार्यालय द्वारा प्रथम पुरस्कार मिला. राजभाषा विभाग गृहमंत्रालय द्वारा कार्यालय को और  डॉ. मुखी को अलग अलग सम्मानित भी किया गया. डॉ. मुखी विभिन्न बैंकों के अहिंदी भाषी कर्मचारियों के हिंदी प्रशिक्षण के प्रति समर्पित रहे.  लेखन के प्रति डॉ. मुखी में बचपन से ही रूझान था. कॉलेज में हिंदी साहित्य सभा का अध्यक्ष पद संभाला. उन्हीं दिनों कॉलेज की मैगज़ीन के लिए लिखते रहे. पहले लेखन व्यवस्थित नही था. अक्सर कागज़ के टुकड़ों पर लिख कर इधर उधर फेंक दिया करते थे. किंतु आपकी जीवन संगिनी श्रीमती सविता मुखी जी ने उन्हें ना सिर्फ व्यवस्थित किया वरन लेखन के लिए प्रेरित भी किया. उनसे प्रेरणा पाकर डॉ. मुखी ने बैंक की पत्रिका के लिए लिखना शुरू किया. उसके संपादन का क

साहित्य के विकास के प्रति समर्पित

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साहित्य की सभी विधाओं में लेखन से जुड़ी श्रीमती कांता रॉय जी हिंदी साहित्य में पूर्णतया रची बसी हैं. वह हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने तधा इसके विकास के अपने अभियान के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं. लेखन के क्षेत्र में पदार्पण करने वाले लेखकों विशेषतया लघु कथा तथा कविता से संबंध रखने वालों के प्रोत्साहन का प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं.  कांताजी का जन्म 20 जुलाई 1969 को कलकत्ता में हुआ था. बचपन से ही आपको साहित्यिक माहौल मिला. साहित्य से लगाव रखने वाले पिता के पास एक बड़ा सा लकड़ी का कबर्ड था. यह कबर्ड साहित्यिक पुस्तकों का संग्रह था. इस कबर्ड ने साहित्य जगत से इनकी मैत्री करायी. छोटी उम्र से ही आप शरतचंद्र, बंकिमचंद्र, हरिवंश राय बच्चन, अमृता प्रीतम, आचार्य चतुरसेन, मृदुला सिंह, मालती जोशी आदि महान साहित्यकारों से इनका परिचय हो गया. उनके द्वारा रचित पात्रों के साथ एक जुड़ाव महसूस करती थीं. उनके शब्दों से प्रेरित होती थीं. अपने मन में उपजे विचारों को अपनी डायरी के साथ साझा करती थीं.  पिता के घर का खुले माहौल ने इनके व्यक्तित्व को और भी आयाम प्रदान किए. कोलकाता में अपने छात्र जीवन

लेखन मेरे लिए अल्लाह ताला की दी हुई नेमत है

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अपनी कलम के ज़रिए समाज की रुढ़ियों , राजनैतिक तथा सामाजिक स्तर पर गिरते हुए जीवन मूल्यों पर प्रहार करने वाले तथा सामाजिक चेतना की मशाल को प्रज्वलित करने वाले रचनाकार जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी अपने इस हुनर के लिए अल्लाह के प्रति आभार प्रकट करते हैं.  लेखन की प्रतिभा बीज रूप में ईश्वर द्वारा उनके मन में रोपित की गई जिसे  उनके अध्यापकों ने पहचान कर अपने आशीष व प्रोत्साहन से पोषित किया. समय के साथ साथ इनकी प्रतिभा में और निखार आया और उस्मानी साहब ने विद्यालय में आयोजित लेखन प्रतियोगिताओं में भाग लेना आरंभ कर दिया. आपकी कला दिनों दिन परवान चढ़ते हुए महाविद्यालय स्तर तक पहुँच गई. 1992 में शिवपुरी मध्यप्रदेश के आकाशवाणी केंद्र के ' युववाणी ' कार्यक्रम में युवा पीढ़ी में बढ़ते नशे की समस्या पर आधारित आपकी कहानी ' विकल्प ' का प्रसारण हुआ. सन 1992 से आप अनुबंध के आधार पर आकाशवाणी केन्द्र शिवपुरी में कार्यरत हैं - सन 1992 से 1999 तक कार्यक्रम ' युववाणी ' के नैमित्तिक कम्पीयर के रूप में तथा उसके बाद से अब तक उद्घोषक के रूप में. आकाशवाणी ने इन्हें नाट्य-स्वर कलाकार

वह परोसती है 'माँ का प्यार'

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आज की युवा पीढ़ी कुछ नया करना चाहती है. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह जोखिम उठाने से भी नही डरती है. राधिका अरोड़ा भी ऐसे ही युवाओं में से एक हैं. राधिका ने एक प्रतिष्ठित टेलीकॉम कंपनी की अपनी अच्छी नौकरी छोड़ कर खाने की एक रेड़ी आरंभ की. इसके माध्यम से वह अपने घर से दूर रह रहे लोगों को स्वादिष्ट खाना परोसती हैं. इसका स्वाद घर के पके खाने जैसा होता है. इस रेड़ी का नाम है 'माँ का प्यार'. पहले पढ़ाई फिर काम के कारण घर से दूर रहने वाली राधिका को पीजी या टिफिन सर्विस का खाना बिल्कुल अच्छा नही लगता था. वह अपनी माँ के हाथ के बने खाने के लिए तरसती थीं. उन्होंने देखा कि उन्हीं की भांति अन्य लोग जो घर से बाहर हैं इसी प्रकाऱ की समस्या का सामना करते हैं. एम बी ए की डिग्री हांसिल कर चुकी राधिका ने अपनी नौकरी छोड़ कर खाने की रेड़ी लगाने का फैसला किया जिसके ज़रिए लोगों को माँ के हाथ के बने खाने जैसा स्वाद दे सकें. राधिका के लिए राह आसान नही थी. उन्हें उन सभी समस्याओं का सामना करना पड़ा जो सड़क पर रेड़ी लगाने वालों को होती हैं. रेड़ी लगाने की अनुमति लेने के लिए भाग दौड़ करना, आस