संदेश

सितंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऊर्जा संरक्षण व स्वच्छ वातावरण की ओर

चित्र
सजल घोष ऊर्जा के संरक्षण संवर्धन तथा सही प्रयोग के बारे मे लेख लिखते हैं. उनके लिखे लेख बहुत सराहे जाते हैं. वर्तमान में वह गुरूग्राम के माने हुए बिज़नेस स्कूल Management Development Institute में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. अपने पढ़ाने के नए तथा वैज्ञानिक तरीके के कारण अपने छात्रों के बीच बहुत प्रसिद्ध हैं. सजल पिछले बीस वर्षों से एक दुसाध्य रोग से पीड़ित हैं. जिसके कारण उनका शरीर 90% अक्षमता से ग्रसित है. वह चलने फिरने के लिए Wheelchair पर आश्रित हैं. अपने बिगड़ते स्वास्थ के कारण इन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. परंतु साहस के धनी सजल ने हार नही मानी. जादवपुर विश्वविद्यालय से इन्होंने M. Tech तथा Ph.D किया. इसके अतरिक्त मुंबई के IGIDR से M.Phil पूर्ण किया. सजल ने अपने कैरियर का आरंभ confederation of Indian Industries (CII) में उनके ऊर्जा विभाग से किया. यहाँ इनका प्रमुख कार्य CII को शोध के क्षेत्र में आवश्यक मदद प्रदान करना था. इसके अतरिक्त केंद्रीय मंत्रालयों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिल कर ऊर्जा संबंधी मुद्दों पर कार्य करना था. 2006 में सजल ने CII छोड़

हमारी हिंदी भाषा फले फूले

चित्र
अपने देश से दूर रह अपनी माटी और अपनी भाषा के प्रति लगाव बहुत बढ़ जाता है. तब इच्छा होती है कि कोई अपनी भाषा में हम से बात करे. बैंक ऑफ इंडिया की जोहांसबर्ग शाखा के मुख्य प्रबंधक श्री विनय कुमार जी अगस्त 2013 से दक्षिण अफ्रीका में कार्यरत हैं. अपने इस प्रवास के दौरान विनय जी ने एक पुस्तक लिखी है 'किसी और देश में' . यह पुस्तक विनय जी की लघु कथाओं एवं कहानियों का संग्रह है.  मूलतः बनारस के रहने वाले विनय जी का मानना है कि लेखन का अर्थ केवल लिखना ही नही है. वरन इसके लिए आवश्यक है कि समाज की नब्ज़ को परखा जाए. लेखन ना सिर्फ अपने विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है बल्की इसके द्वारा समाज को भी सही दिशा दिखाई जा सकती है.  विनय जी लेखन के लिए विषय का चुनाव बहुत सावधानी से करते  हैं. यह विषय अक्सर वर्तमान समस्याओं, राजनीति और समाज से जुड़े हुए होते हैं.  पढ़ने की आदत के कारण साहित्य में विनय जी की रुचि बचपन से ही रही. बैंक के व्यस्त कार्यक्रम से समय निकाल कर वह लेखन भी करते रहे. मूलतः विनयजी एक लघुकथाकार हैं लेकिन कभी कभी कहानियां और गद्य लेखन भी करते हैं.  पिछले वर्ष विनय जी

कर दिया कमाल

चित्र
2016 के लिए गए पैरालिंपिक्स दल के सदस्यों ने देश का नाम रौशन कर दिया. जहाँ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स में भारत के कुल 117 प्रतिस्पर्धियों ने भाग लिया किंतु हम केवल दो पदक (एक रजत एवं एक कांस्य) ही जीत पाए. वहीं पैरालिंपिक्स में गए 18 खिलाड़ियों ने कुल चार पदक (दो स्वर्ण, एक रजत तथा एक कांस़्य) जीत कर साबित कर दिखाया कि शारीरिक अक्षमता के बावजूद वह किसी से कम नही हैं. यदि उचित अवसर मिले तो वह भी देश की शान बढ़ा सकते हैं. आइए उन खिलाड़ियों के जीवन तथा उनके संघर्ष पर एक नज़र डालते है. मरियप्पन थंगावेलू  पुरुषों की हई जम्प T-42 प्रतियोगिता में 1.89 मी. की छलांग लगा कर मरियप्पन ने भारत को 2016 पैरालिंपिक्स में पहला स्वर्ण पदक दिलाया.  पाँच वर्ष की आयु में मरियप्पन का पैर बस के नीचे आकर कट गया. अपने पीटी शिक्षक की सलाह पर इन्होंने हाई जम्प को खेल के रूप में स्वीकार किया. इस साल मार्च में 1.60 मी. की निर्धारित सीमा से कहीं अधिक 1.78 मी. की जम्प लगाकर मरियप्पन ने पैरालिंपिक्स के लिए क्वालीफाई किया था. तब से उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया था. जिसके कारण वह स्वर्ण पदक जीत पाए. वरुण सिंह भाटी

हिंदी को लोकप्रिय बना रहे हैं यह फेसबुक ग्रुप

चित्र
लोगों को जोड़ने का एक प्रसिद्ध माध्यम है सोशल साइट ' फेसबुक '. फेसबुक ना सिर्फ लोगों को जोड़ने का कार्य कर रहा है बल्की फेसबुक पेज तथा ग्रुप के माध्यम से लोगों में सकारात्मक विचारों का प्रचार भी किया जा रहा है. फेसबुक में कई ऐसे ग्रुप हैं जो राष्ट्रभाषा हिंदी को लोकप्रिय बनाने की दिशा में कार्यरत हैं. यह ग्रुप हिंदी लेखन को प्रोत्साहन प्रदान कर रहे हैं. यहाँ नवोदित लेखकों को ना सिर्फ उनकी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया जाता है बल्कि उसे और निखारने के लिए यह ग्रुप मार्गदर्शन भी प्रदान कर रहे हैं. इस लेख में ऐसे ही कुछ फेसबुक समूहों का वर्णन किया गया है. लघु कथा के परिंदे हिंदी में लघु कथा लेखन को बढ़ावा देने में यह ग्रुप सराहनीय कार्य कर रहा है. हर माह की पहली तिथि को ग्रुप के सदस्यों को दस विषय दिए जाते हैं. इन विषयों का चुनाव सावधानीपूर्वक किया जाता है. विषय ऐसे होते हैं जो लेखक की चिंतन प्रक्रिया को परिमार्जित करने में सहायक होते हैं. रचनाकार को कम से कम सात विषयों पर लिखना अनिवार्य होता है. अधिकतम प्रविष्टियों की कोई सीमा नही होती है. लेखक अधिकाध

शिक्षक जिसने दिखाई समाज को नई दिशा

चित्र
सरकारी तंत्र में व्याप्त अव्यवस्था की शिकायत हम सभी करते हैं. अक्सर यह कहते हुए हथियार डाल देते हैं कि इस व्यवस्था में कोई सुधार नही किया जा सकता है.  हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हार मानने की बजाय हालात बदलने का प्रयास करते हैं और उसमें सफल भी होते हैं. ऐसी ही एक मिसाल पेश की है सरकारी शिक्षक अवनीश यादव ने.  गाजीपुर जिले के बभनौली गांव के रहने वाले अवनीश यादव की नियुक्ति प्राथमिक शिक्षक के रूप में 2009 में गौरी बाजार के प्राथमिक विद्यालय पिपराधन्नी गांव में हुई थी. किंतु इस प्राइमरी स्कूल का हाल ऐसा था कि यहाँ न तो बच्चे पढने आते थे और न ही शिक्षक स्कूल में पढ़ाने जाते थे. अवनीश ने ऐसी स्थिति देखी तो स्वयं घर-घर जाकर लोगों से सम्पर्क किया. गांव में मजदूरी करने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक थी. इन लोगों की सोंच थी कि जितने ज्यादा हाथ उतनी ज्यादा कमाई. अतः वह बच्चों को स्कूल नही भेजना चाहते थे. ऐसी स्थिति में गांव वालों को समझाना और बच्चों को स्कूल लेकर आना एक कठिन चुनौती थी. इस कठिन कार्य को करने का निश्चय अवनीश ने कर लिया था. अतः वह गांव वालों को शिक्षा का महत्व समझाते. श

संगीत मेरी प्रेरणा है

चित्र
यदि आगे बढ़ने की चाह हो तो कुछ भी आपका रास्ता नही रोक सकता है. यह साबित कर दिखाया है सुधांशु व्यास ने. Muscular Dystrophy नामक बीमारी से ग्रसित सुधांशु अपनी हिम्मत और हौंसले के बल पर गायन के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं.  दस साल की उम्र में जब सुृधांशु को अपनी बीमारी का पता चला तो यह जानकर वह बहुत दुखी हुए कि उन्हें अब अपना जीवन व्हीलचेयर पर बिताना पड़ेगा. यह परिस्थिति बहुत पीड़ादाई थी. इस कठिन समय में संगीत के सात स्वरों ने उन्हें इस दुख से उबरने में सहायता की. जब भी वह संगीत सुनते तो अपनी तकलीफ को भूल कर खुशियों के संसार में चले जाते थे. अतः सुधांशु के परिवार ने उन्हें संगीत की तालीम देने का फैसला किया.  सुधांशु का जन्म 3 जुलाई 1999 में एक संगीत प्रेमी घराने में हुआ. सुधांशु के दादा निरंजन व्यास जी को संगीत में गहरी रुचि है. इनके पिता तथा चचेरे भाइयों को भी संगीत में रुचि है. सुधांशु के परदादा श्री श्याम सुंदर व्यास जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे. सुधांशु अब तक दस से भी अधिक स्टेज प्रस्तुतियां कर चुके हैं. रेडियो के एफ एम चैनल 94.3 पर सुधांशु ने गाना भी गाया है. सुधांशु को रा

'एक नया संसार' पैरलंपिक्स 2016

चित्र
7 सितंबर से 18 सितंबर तक ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक्स का आयोजन हो रहा है. इन खेलों की मेज़बानी भी रियो डिजिनेरो ही कर रहा है.  इस आयोजन का मोटो है 'A new world ( Um mundo novo). पैरालिंपिक्स एक ऐसा खेल आयोजन है जिसमें शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे प्रतियोगियों को विभिन्न खेल स्पर्धाओं में अपनी दक्षता दिखाने का अवसर प्रदान किया जाता है.  29 जुलाई 1948 को लंदन ओलंपिक्स के आरंभ समारोह में डॉ. गटमॉन ने पहली व्हीलचेयर प्रतियोगिता आयोजित की. इसमें तीरंदाज़ी की प्रतियोगिता में 16 महिला तथा पुरुष प्रतियोगियों ने भाग लिया. आधिकारिक तौर पर पहले पैरालिंपिक्स खेल 1960 में रोम इटली में आयोजित किए गए. इसमें 23 देशों के 400 प्रतियोगियों ने भाग लिया.  भारत ने सर्वप्रथम 1968 के पैरालिंपिक्स में भाग लिया. उसके बाद 1972 में किंतु फिर 1976 तथा 1980 में भारत की अनुपस्थिति रही. 1984 के बाद भारत लगातार इस आयोजन में भाग लेता रहा.  भारत को पहला स्वर्ण 1972 में मुरलीकांत पेटकर ने दिलाया. 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में पेटकर ने 37.331 सेकेंड्स का विश्व रिकार्ड बनाया.  2016 पैरालिंपिक्स के लिए भारत की