जड़ों से जुड़ाव
जड़ों से जुड़ाव कहते हैं व्यक्ति कहीं भी रहे उसे अपनी जड़ों को नही भूलना चाहिए. जो व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ा होता है वह अपनी पहचान आसानी से बना सकता है. भारत से हजारों मील दूर ट्रिनिडाड वेस्टइंडीज़ में जन्मे चैतराम गया जी ने भी अपनी जड़ों से अपना संपर्क बनाए रखा है. भारतीय धर्म और दर्शन में रुचि रखने वाले चैतराम जी हिंदू धर्म ग्रंथों विशेषकर रामायण के पठन से वहां के हिंदू समाज को भारतीय संस्कारों से परिचित कराते हैं. वह गरीबों की सहायता भी करते हैं. चैतरामजी के पूर्वजों को सन 1845 के करीब अंग्रेज़ों ने भारत के कई हिस्सों खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल से गन्ने के खेतों में काम करने के लिए यहां लाकर बसाया था. कालांतर में इन लोगों ने अपने परिश्रम से स्वयं फार्म खरीदे, अपने बच्चों को शिक्षित किया और वहां की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इन लोगों ने संगठित होकर रहना आरंभ किया. पीछे छूट गए अपने समाज के धर्म और संस्कार को जीवित रखने का प्रयास किया. वहां कई हिंदू मंदिरों का निर्माण किया. धार्मिक ग्रंथों के पठन पाठन की परंपरा का निर्वहन किया. इस प्रकार हजा