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आत्मविश्वास एक शक्ति

मानवता  का इतिहास ऐसे लोगों की कथाओं  से भरा है जिन्होंने अपने अदम्य साहस के बल पर वो कर दिखाया जो मनुष्य की क्षमताओं से परे मालूम पड़ता था। ऐसी  उनमें कौन सी विशेष शक्ति थी जिसके बल पर वो ऐसे कार्य कर सके। वह शक्ति है आत्मविश्वास की जिसने उन्हें ऊंचाईयों को छू लेने को प्रेरित किया। आत्मविश्वास के बल पर उन्होंने बड़े सपने देखे और उन्हें प्राप्त किया। " महान कार्य करने के लिए हमें न सिर्फ बड़े लक्ष्य रखने चाहिए  वरन उन पर विश्वाशस  भी करना  चाहिए।"                                                                                                                [ अनातोले फ्रांस] आत्मविश्वास एक प्रेरक शक्ति जो हमें जीवन में आगे बढ़ने तथा कुछ कर दिखाने के लिए प्रोत्साहित करती है। कुछ कर दिखाने के लिए हमें मज़बूत शरीर की नहीं बल्कि मज़बूत इरादों की आवश्यता होती है। आत्मविश्वास ही हमारे इरादों को मज़बूत करता है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी होती है वह् कभी भी सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है। जो स्वयं पर विश्वास नहीं करता वो किसी भी वास्तु पर विश्वास नहीं कर सकता है। " ब्

रिश्ते बहुमूल्य निधि

सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सभी रिश्तों से घिरे रहते हैं। रिश्ते सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार होते हैं। रिश्ते हमें आपस में बांधे रहते हैं। हमारे रिश्ते जितने मज़बूत होते हैं सामजिक ढांचा उतना ही मज़बूत बनता है। प्रेम संबंधों को सबल बनाता है। स्वस्थ संबंधों के लिए आवश्यक है की हमारे बीच एक दूसरे के लिए आदर तथा आपसी समझबूझ हो। एक दूसरे के हित लिए अपने  निजी स्वार्थों का त्याग रिश्तों को दीर्घायु बनाता है। रिश्ते हमें बहुत कुछ देते हैं। आपसी प्रेम एवं सहयोग तथा एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना हमें पूर्णता प्रदान करती है। एक रिश्ते को बनाये रखने का दायित्व उसमें सम्मिलित दोनों पक्षों का होता है। केवल एक पक्ष रिश्ते को नहीं बनाए रख सकता है। यदि एक व्यक्ति ही इस दिशा में प्रयास करता है तथा दूसरा उदासीन रहता है तो एक स्वस्थ रिश्ता कायम नहीं हो सकता है। ऐसा रिश्ता सामान्य नहीं होगा। उस रिश्ते में रहने वाला व्यक्ति घुटन महसूस करेगा। उदासीनता एवं उपेक्षा अक्सर सीधे तौर  पर जताई गयी घृणा से भी अधिक तकलीफ देती है। संबंधों में माधुर्य बनाए रखने के लिए आवश्यक है की जिस प्रेम, विश्वास तथा स

ईश्वर और हम

हम सभी ईश्वर के बारे में बात करते हैं। बहुत से ईश्वर में विश्वास भी करते हैं। किन्तु क्या कभी भी हम इस बात पर विचार करते हैं की ईश्वर से हमारा क्या सम्बन्ध है। हममें से बहुतों के लिए ईश्वर  उस परम शक्ति का नाम है जिसने इस संसार की रचना की है। जो ऊपर कहीं आसमान में रहती है और हमारा पालन करती है। हमें जब भी किसी वास्तु की आवश्यकता होती है हम उसे पाने के लिए ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। किसी मुसीबत में होने पर मदद के लिए उसे पुकारते हैं। हमारे लिए ईश्वर हमसे पृथक एक सत्ता का नाम है। वास्तव में ईश्वर हमारा सबसे अन्तरंग मित्र है। जिस पर हम पूर्ण विश्वास कर सकते है। वह हमारा परम हितैषी है जो हमें सही मार्ग दिखाता है। वो हमसे पृथक नहीं है वरन वह हमारे ह्रदय में रहता है और वहीँ से हमें उचित एवं अनुचित का ज्ञान कराता है। वह हमारी अंतरात्मा की आवाज़ के द्वारा हमसे वार्तालाप करता है। किन्तु यह सब वह चुपचाप करता है। वह कभी भी हमारे कार्यों में दखल नहीं देता है। ईश्वर हमारे भीतर है किन्तु हम उसे बाहर खोजते हैं। ईश्वर से हमारा सम्बन्ध केवल हमारी आवश्यकताओं तक ही सीमित है। जब हमें किसी वास्तु की आव

विचारों का प्रभाव

 http://www.openbooksonline.com/group/spiritual/forum/topics/5170231:Topic:332495?commentId=5170231%3AComment%3A333868&xg_source=msg_com_gr_forum जिस प्रकार एक स्वस्थ शरीर के लिए संतुलित एवं पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार एक स्वस्थ व्यक्तित्व के लिए सात्विक एवं आशावादी विचारों का होना अति आवश्यक है। विचारों में बहुत शक्ति होती है। सात्विक एवं प्रेरणादायी विचार एक ऐसे व्यक्तित्व को जन्म देते हैं जो किसी भी विषम परिस्तिथि का सामना कर सकता है। विचारों का प्रवेश हमारे मन में दो तरह से होता है एक तो जो हम सुनते हैं  दूसरा जो हम पढ़ते हैं        हम जो भी विचार इन दो मार्गों से ग्रहण करते है वो हमारे मष्तिष्क से होते हुए हमारे अवचेतन मन में प्रवेश कर जाते हैं। यही विचार धीरे धीरे हमारे व्यक्तित्व का का हिस्सा बन जाते हैं। अतः यह अति आवश्यक है की हम विचारों के अधिग्रहण के प्रति सचेत रहें। जिस प्रकार दूषित भोजन शरीर के लिए हानिकारक हैं उसी प्रकार दूषित विचार हमारे व्यक्तित्व का नाश करते हैं।   हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क

आत्म साक्षात्कार

इस सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानव ह्रदय में अपने अस्तित्व को लेकर अनेक प्रश्न उठते रहे हैं।  'मैं कौन हूँ'    'इस धरती पर मेरे आगमन का क्या औचित्य है' ' वह कौन है जो इस सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करता है'  इन सभी प्रश्नों ने वर्षों से मानव ह्रदय को आंदोलित कर रखा है।  मनुष्य की सम्पूर्ण वैज्ञानिक  एवं आध्यात्मिक प्रगति का कारण यही प्रश्न रहे हैं। जब भी इन प्रश्नों ने किसी व्यक्ति के मन को माथा है तब वह इन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो उठा है। उसकी इस  व्याकुलता ने उसे आध्यात्म के दुष्कर मार्ग का पथिक बना दिया है। अपने प्रश्नों का उत्तर खोजने  के लिए वह सिद्धार्थ की भांति अपना सर्वस्व त्याग कर इस दुर्गम मार्ग पर चल पड़ा है। यह सिद्धार्थ  जब अपने प्रश्नों के वन में भटकते भटकते थक जाता है तब शांत होकर एक स्थान पर बैठ जाता है। अपने आप को बाहरी दुनिया से पृथक कर वह अंतर्मुखी हो जाता है। गहन साधना के बाद वह उन प्रश्नों का उत्तर अपने भीतर पाता है जिन्हें पाने के लिए वह बाहर भटक रहा था। हर सिद्धार्थ को गौतम बनाने के लिए इस प्रक्रिया से ग