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दैनिक जीवन की विसंगतियों को देखकर लिखने की प्रेरणा मिलती है

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अपनी लघुकथाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों, कथनी और करनी के फ़र्क एवं गिरते मूल्यों पर कुठाराघात करने का काम पवन जैन जी बड़ी ही कुशलता से करते हैं. अपने लेखन के जरिए आप की कोशिश ह्रासित होते जीवन मूल्यों की रक्षा करना एवं समाज को नई दिशा दिखाना है. आप मानव स्वभाव को पढने में माहिर हैं. इसी कारण आप की लघुकथाओं के पात्र काल्पनिक नहीं वरन वास्तविक प्रतीत होते हैं. अपनी लघुकथाओं के माध्यम से आप लोगों के मन में विचारों की एक श्रृंखला को जन्म देने में सफल रहते हैं. पवन जी का जन्म 1 जनवरी 1954 को मध्यप्रदेश के सागर शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. डाक्टर सर हरीसिंग गौर विश्व विद्यालय से आपने विज्ञान विषय से स्नातक तत्पश्चात जबलपुर विश्व विद्यालय से विधि स्नातक एवं अर्थ शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की. विद्यार्थी जीवन से  ही आप सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उत्साह पूर्वक भाग लेते रहे.  1977 से  आप बैंक सेवा में रहे.  विभिन्न पदों पर रहते हुए दिसंबर  2013 में  बैंक  से सेवा निवृत हुए. बैंक सेवा के दौरान आप राजभाषा विभाग सेे जुड़े रहे. हिंदी भाषा के प्रचार में

ग्रामीण परिवेश की सादगी मेरे लेखन में झलकती है

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श्री अनिल शूर आज़ाद का लेखन जीवन के बहुत करीब है. ग्रामीण परिवेश में बचपन व्यतीत होने का असर है कि जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण बहुत खुला हुआ है. गांव की सादगी आपके जीवन के साथ साथ लेखन में भी झलकती है. अनिल जी के लेखन की शुरुआत एक रोचक प्रसंग से हुई. बात वर्ष 1978 के अंतिम दिनों की है जब अनिल जी रेवाड़ी(हरियाणा) के निकट रामपुरा गांव के बलबीर सिंह अहीर हायर सेकेंडरी स्कूल  की नवीं कक्षा का विद्यार्थी थे. एक बार इनके अध्यापक श्री बंशीधर जी ने ' छात्र-असंतोष ' विषय पर निबंध याद करने के लिए कहा. लेकिन अनिल जी ने निबंध याद नहीं किया. अपनी घोषणानुसार मास्टर जी ने लिखित परीक्षा ली. मास्टर जी पिटाई करने में कोई कसर नहीं रखते थे. अतः अनिल जी ने अपनी समझ से जोड़-जाड़कर दो पेज का निबंध तो लिख दिया किंतु डर था कि ज्यादा नहीं तो दो चार डंडे तो खाने ही पड़ेंगे. परंतु अगले दिन आप को बेहद आश्चर्य हुआ जब मास्टर जी ने पिटाई करने की बजाय अपने पास बुलाकर आपके मौलिक लेखन की पूरी कक्षा के समक्ष तारीफ की व लेख पढ़कर भी सुनाया. बस इस प्रोत्साहन ने इनके लेखन की प्रतिभा को फलने फूलने का अवसर प्र

मेरे लिए लेखन अनुभूति से अभिव्यक्ति का सफर है

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 "मैं लिखती हूँ क्योंकि लेखन मेरे लिए सांस लेने जैसा है. इसके बिना मैं जी नहीं सकती हूँ."  यह कहना है कथाकार-कवयित्री कमल कपूर जी का. लेखन से आपको नैसर्गिक लगाव है. इसी कारण इनके लेखन में एकरसता की शुष्कता नहीं बल्कि विविधता की सरसता है. आपके लेखन में प्रकृति की अनुपम छठा देखने को मिलती है. लेखन इनके लिए अपने जीवन की अनुभूतियों को शब्दों में पिरोने का माध्यम है. इनकी प्रेरणास्रोत इनकी साहित्यिक गुरु चित्रा मुदगिल जी हैं. वैसे तो बहुत छोटी उम्र से लेखन कर रही हैं लेकिन 1998 से विधिवत सक्रिय हैं. कमल जी अपने लेखन के माथ्यम से अंधविश्वासों , बेमानी रूढ़ियों , कुरीतियों तथा बीमार मानसिकता जैसी विसंगतियों पर कुठाराघात करती हैं. इन बुराइयों का बहिष्कार कर नई स्वस्थ परंपराएं स्थापित करने पर जोर देती हैं. इनके लेखन के विषय सदैव आसपास के परिवेश से लिए जाते हैं तथा समकालीन घटनाओं पर आधारित होते हैं. कमल जी अपनी अनुभूतियों को शब्दों के जरिए कागज पर उतारती हैं. जिसके कारण पाठकों को अाकर्षित करने में सफल हैं. देश विदेश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में आपकी विभिन्न विधाओं की रचन

लेखन मेरे लिए ओढने ,खाने , बिछाने जैसा है

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वीणा वत्सल जी के लिए लेखन एक सहज प्रक्रिया है. लेखन उनके लिए रोजमर्रा के काम की तरह अति आवश्यक है. उनका कहना है "मेरे इर्द-गिर्द शब्द जैसे नाचते रहते  हैं. मुझे बस उन्हें पहचान कर उकेरना होता है." इनकेे लेखन की शुरुआत बचपन से ही हो गई थी. जब यह कक्षा 8 में थी तब इनकी पहली कविता पटना से प्रकाशित होने वाले दैनिक 'नवभारत टाइम्स ' में प्रकाशित हुई थी. उसके बाद तो इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. कॉलेज में आते  आते इनकी कवितायें लगातार दैनिक पत्रों एवं कई लघु राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं थीं. आकाशवाणी भागलपुर से इनकी अनेक कविताओं का प्रसारण भी हुआ. लेकिन कुछ व्यक्तिगत कारणों ने इनकी इस यात्रा में व्यवधान उत्पन्न कर दिया. करीब बीस सालों के लंबे अंतराल के बाद इन्होंने पुनः लेखनी थामी. इतने वर्षों से मन में दबी भावनाएं ना सिर्फ कविताओं बल्कि कहानियों एवं उपन्यास के रूप में व्यक्त होने लगीं. परिणाम स्वरूप कई कहानियां अनेक  पत्र - पत्रिकाओं तथा विभिन्न ब्लॉग्स और प्रतिलिपि.कॉम पर प्रकाशित हुईं. इस वर्ष बोधि प्रकाशन द्वारा इनका पहला उपन्यास 'त