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एक विचार जिसने बदल दी तस्वीर

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जम्मू और कश्मीर राज्य का लद्दाख क्षेत्र एक ठंडा पठार है. यहाँ का जीवन अत्यंत कठिन है. यह पहाड़ों का रेगिस्तान कहा जाता है.  लद्दाख का यह क्षेत्र पानी की कमी की समस्या से जूझ रहा था. इस समस्या का एक बहुत ही नायाब हल निकाला इस क्षेत्र के एक मैकेनिकल इंजीनियर सोनम वांगचुक ने. वांगचुक ने कृतिम तौर पर ग्लेशियर का निर्माण किया. यह ग्लेशियर पिरामिड के आकार के होते हैं और देखने में बौद्ध स्तूप की तरह लगते हैं. अतः इन्हें 'बर्फ के स्तूप' के नाम से पुकारा जाता है.  सर्दी के मौसम में इस क्षेत्र का तापमान गिरकर -30 से -40 डिग्री सेल्सियश तक पहुँच जाता है. इस दौरान चारों ओर बर्फ जम जाती है. अतः खेती नहीं की जा सकती है. बसंत ॠतु के आगमन पर जब बर्फ पिघलती है तो तालाब पिघली हुई बर्फ के पानी से भर जाते हैं. इसी समय किसान बोआई करते हैं.  पहले लोगों को पानी लेने के लिए बहुत चढ़ाई करनी पड़ती थी. किंतु लोगों को पानी की किल्लत झेलनी पड़ती थी. सोनम ने तालाबों और झरनों की दिशा मोड़ दी. जिससे पानी ऊपर पहाड़ों से धीरे धीरे नीचे उतारा जाता था. पानी नीचे आने पर ठंड से जम जाता था. एक पर्त जम जाने क

साहित्य के माध्यम से समाज की दिशा बदलना चाहता हूँ

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साहित्य समाज को आईना दिखाता है. एक साहित्यकार अपनी लेखनी की शक्ति का प्रयोग कर समाज में व्याप्त कुरीतियों भ्रष्टाचार वैमनस्य आदि पर कुठाराघात कर एक नए समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकता है. श्री सुरेंद्र कुमार अरोड़ा एक ऐसे ही साहित्यकार हैं. अपने लेखन के माध्यम से अरोड़ा जी समाज में निरन्तर घर कर रही संवेदनहीनता और निरन्तर पक रही भ्र्ष्टाचारी मानसिकता की ओर सबका ध्यान खीचना चाहते हैं. अपनी कलम के माध्यम से आप देश विरोधी शक्तियों को सख़्त संदेश प्रेषित करते हैं. ताकि ऐसी ताकतें देश अखंडता को कोई नुकसान ना पहुँचा पाएं. समाज में दिन प्रतिदिन हो रहे मूल्य ह्राश पर रोक लगाने एवं संस्कारहीन प्रवर्तियों को निरुत्साहित करने में अपका प्रयास सराहनीय है. भारतवर्ष में एक अजीब किस्म की मानसिकता घर कर रही है. खुलेपन के नाम पर ऐसे विचारों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो न सिर्फ हमारी संस्कृति के विरुद्ध हैं वरन देश को खण्डित करने का अपराध भी कर रहे हैं. ऐसे षड्यन्त्रों का आप अपनी लेखनी के माध्यम से पर्दाफाश करते हैं. देश व समाज के प्रति इनका प्रेम इन्हें समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता

गुनी गुनों की खान

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अक्सर माता पिता अपनी संतान का नाम यह सोंच कर रखते हैं कि नाम का प्रभाव उनके बच्चे के व्यक्तित्व पर पड़ेगा. कुछ बच्चे अपने माता पिता की इस सोंच को सही साबित कर देते हैं. गुनी मिश्रा एक ऐसी ही बच्ची है.  27 मार्च 2006 को जन्मी गुनी  बहुत छोटी उम्र से ही कमाल कर रही है. जब वह महज साढ़े तीन साल की थी तब अंग्रेज़ी का अखबार पढ़ने लगी थी. नर्सरी क्लास में उसे 16 तक पहाड़े याद थे तथा तीन अक्षर वाले शब्द लिख लेती थी. छोटी सी उम्र में ही गुनी गायत्री मंत्र शनि मंत्र आदि शुद्ध उच्चारण के साथ सुनाती थी. गुनी एक अच्छी वक्ता है. स्कूल मे पंद्रह अगस्त छब्बीस जनवरी के अवसर पर अपनी स्पीच से बहुत प्रसंशा बटोरती हैं. गुनी चित्रकला में भी दिलचस्पी रखती है. आत्मरक्षा.तथा आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कराटे भी सीखती है. गुनी अपने माता पिता के साथ अहमदाबाद में रहती है. गुनी के पिता शैलेंद्र नौकरी पेशा हैं जबकि माता अंजली एक गृहणी हैं. गुनी आनंद निकेतन शिलज स्कूल की पांचवीं कक्षा की छात्रा है. इतनी कम उम्र में गुनी चित्रकला, नृत्य, हस्तलेखन, संस्कृत श्लोकों के गायन आदि कई प्रकार की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ल