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उम्र कम लेकिन हुनर बड़ा

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उम्र कम लेकिन हुनर बड़ा 'यह सपने के पूरा होने जैसा है. मैं मेहनत कर रहा हूँ क्योंकी सफलता का कोई शार्टकट नही होता है.' यह कहना है 2015 के Junior Golf World championship विजेता शुभम जगलान का. यह कारनामा उन्होंने 2012 में केवल 9 वर्ष की आयु में भी कर दिखाया था.  16 अगस्त 2004 को शुभम का जन्म हरियाणा के इसराना गांव में हुआ था. घर में दूध का कारोबार होता था. पहलवानों के इस गांव में किसी ने भी Golf का नाम नहीं सुना था. Golf से शुभम का रिश्ता तब जुड़़ा जब कपूर सिंह नाम के एक NRI ने इनके गांव में आकर एक Golf Academy आरंभ की जिसका उद्देश्य बच्चों में Golf के प्रति रुझान पैदा करना था ताकि नई प्रतिभाओं को तलाशा जा सके. शुभम ने भी इस Academy में दाखिला लिया. Academy तो कुछ दिन में बंद हो गई लेकिन शुभम का रिश्ता Golf से सदा के लिए जुड़़ गया.  अपने Desktop पर YouTube पर Tiger Woods जैसे महान खिलाड़ियों का खेल देखकर इन्होंने प्राप्त सीमित संसाधनों के द्वारा Training जारी रखी. इस दौरान शुभम ने अपनी आयु वर्ग में कई Tournaments में भाग लिया. इस दौरान भारत की बेहतरीन Golf खिलाड़ी नोनीता

सूखे में मदद की फुहार

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सूखे में मदद की फुहार हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है. लेकिन देश के हर प्रांत में किसानों का हाल बेहाल है. आज भी किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर हैं. सूखे की दशा में फसल नष्ट होने पर कर्ज के बोझ से दबे किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं. आए दिन समाचारपत्रों में इस तरह के समाचार छपते हैं. TV Shows में इस पर चर्चा होती है. किसानों की इस बदहाली पर हम सब अफसोस तो करते हैं किंतु बहुत कम लोग ही हैं जो कुछ करते हैं.  फिल्मजगत के प्रसिद्ध अभिनेता नाना पाटेकर उन चंद लोगों में से हैं जो चुपचाप बैठ कर देखने की बजाय कुछ करने में यकीन रखते हैं. अपनी भूमिकाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त अव्यवस्था और अराजकता एवं उसके प्रति हमारी उदासीनता पर तीखी चोट करने वाले नाना जब भी किसानों की दुर्दशा के बारे में सुनते तो उनके मन में कुछ करने की भावना जागती. आरंभ में उन्होंने अपनी कुछ व्यक्तिगत पूंजी से किसानों की मदद आरंभ की.  शीघ्र ही उन्होंने महसूस किया कि यह समस्या बहुत बड़ी है अतः इस पर वृहद पैमाने पर सोंचने की आवश्यक्ता है. फिल्मजगत के अपने एक मित्र मकरंद अनसपुरे के साथ मिलकर नाना ने NAAM

मदद का 'साया'

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मदद का 'साया' पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के रहने वाले मेरे Facebook मित्र वक़ार ख़ुर्शीद एक जिंदादिल इंसान हैं. अपनी ज़िंदगी में कई प्रकार की तकलीफों से गुजरने के बाद भी इन्होंने हिम्मत नही हारी.  बचपन में इनका एक पैर पोलियो ग्रस्त हो गया. पैरों में Braces पहन कर इन्होंने चलना शुरू किया. 12 वर्ष की अवस्था में जब यह मरी के P A F cadet college Boarding school में अपने भाई के साथ पढ़ रहे थे तब अचानक ही इन्हें पोलियो का एक दौरा पड़ा जिससे चलने में तकलीफ होने लगी. फिर भी इन्होंने हिम्मत नही हारी. धीरे धीरे ही सही चलना जारी रखा. जब यह Bsc कर रहे थे तब यह सीढ़ियों से गिर पड़े. इनके सर पर गंभीर चोट लगी. काफी इलाज के बाद भी कोई फायदा नही हुआ. जीवन के दस साल इन्होंने बिस्तर पर पड़े हुए काटे. इस दौरान इनकी दुनिया इनके कमरे तक सिमट गई. ऐसे में किसी फरिश्ते की भांति पाकिस्तान के NGO SAAYA Foundation ने इनके जीवन में कदम रखा. SAAYA Association शारीरिक रूप से अक्षम लोगों का समूह है. इसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों की स्थिति सुधारने में उनकी सहायता करना है ताकि वह समाज में सर उठा कर जी
समस्या होने पर उसे विवेक द्वारा हल करना चाहिए। 

सहिष्णुता और भारत

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सहिष्णुता और भारत सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना. व्यापक अर्थ में सहिष्णुता का अर्थ है अपना आचरण इस प्रकार रखना जिससे दूसरों को कष्ट ना हो. यहाँ कष्ट से आशय दैहिक तथा मानसिक दोनों प्रकार के कष्टों से है.   सहिष्णुता हमें सिखाती है कि दूसरों की भावनाओं उनके विचारों का सम्मान किया जाए.  भारत की भूमि शताब्दियों से विभिन्न विचारधाराओं की जननी रही है. यहाँ वात्स्यायन के कामसूत्र को स्वीकृति मिली है तो वेदव्यास के वेदांतसूत्र को भी लोगों ने सम्मान दिया है. जहाँ निराकार ब्रह्म की अवधारणा है तो साकार रुप में बहुदेवों के पूजन की भी प्रथा रही है.   सनातन धर्म के अतिरिक्त यहाँ बौद्ध, जैन तथा सिख धर्म का जन्म हुआ है.  ईसाई धर्म भारत में सदियों पुराना है. कई यूरोपीय देशों में इसका प्रसार होने से पहले भारत में इसका आगमन हुआ. भारत में हिंदू धर्म के बाद इस्लाम ऐसा धर्म है जिसके मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है. यहूदी, पारसी तथा बहाई धर्म के लोगों को मानने वाले लोग भी इस देश में पाए जाते हैं.  हमारी कई परंपराएं रीति रिवाज़ हमारी सांझी विरासत की देन हैं. विभिन्नता को आत्मसात करने की हमा

रुक जाना नहीं

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रुक जाना नहीं  जब समय आपके प्रति कठोर हो तब अपने आप को और अधिक कठोर बनाएं. यह आपको मुसीबतों का सामना करने में मदद करेगा. कुछ इसी तरह की सोंच है CA चिराग चौहान की. मुसीबतों से हार ना मानने का इनका जज़्बा काबिले तारीफ है.  18 वर्ष की आयु में पिता का साया सर से उठ गया. अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हुए इन्होंने अपने पैरों पर खड़े होने का निश्चय किया. इसके लिए चिराग ने Charted Accountancy के कोर्स में दाखिला लिया. साथ ही साथ इन्होंने Graduation में भी प्रवेश लिया. एक दृढ़ निश्चय के साथ दोनों परीक्षाओं की तैयारी आरंभ कर दी. स्नातक में प्रथम श्रेणी प्राप्त की. साथ ही साथ CA की PE II की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली. Articleship के लिए इन्होंने M/S A.J. Shah & Co. को चुना. यहाँ अपना काम चिराग को बहुत पसंद आ रहा था. गाड़ी बहुत अच्छी चल रही थी. लेकिन 11 July 2006 का दिन इनके जीवन में बड़ा भूचाल लेकर आया. इसकी शुरुआत आम दिनों की तरह ही हुई थी. रोज़ की तरह चिराग अपने काम पर गए. काम जल्दी ख़त्म हो जाने के कारण उन्होंने घर लौटने के लिए लोकल ट्रेन पकड़ी. सारा मुंबई लोकल ट्रेन में हुए
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आज देश की दो महान महिला विभूतियों का जन्मदिन है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और श्रीमती इंदिरा गांधी। दोनों ही वीरता , साहस तथा दृढ़ता का प्रतीक हैं। झांसी की रानी ने वीरता और साहस से अंग्रेज़ों का मुकाबला किया। उन्होंने पुरुष प्रधान समाज को दिखा दिया की जिन हाथों में चूड़ियां खनकती हैं वही तलवार भी टकरा सकते हैं। श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस विशाल प्रजातंत्र की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। वह एक दृढ व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं। विविधता से भरे इस देश की कमान उन्होंने बहुत ही सूझबूझ के साथ सम्हाली। दोनों ही महिलाओं को शत शत नमन। 

सामाजिक चेतना का दीप

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सामाजिक चेतना का दीप दीपावली में हम धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं. घर की स्त्री को लक्ष्मी कहते हैं किंतु जब घर में बेटी का जन्म होता है तब बजाय खुश होने के बहुत से लोग उसे बोझ मानकर दुखी होते हैं. बहुत से लोग तो गर्भ में ही लिंग परीक्षण करा कर बेटियों की हत्या कर देते हैं.  ऐसे माहौल में कुछ लोग सामाजिक चेतना का दीप जला कर समाज को राह दिखाने का कार्य करते हैं. कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध मुहिम चलाने वाले तथा लोगों को बेटियों का महत्व समझाने वाल ऐसे ही एक व्यक्ति हैं डॉ. गणेश राख. पुणे के डॉ. गणेश ने बालिकाओं की रक्षा हेतु एक अनोखा कदम उठाया है. अपने अस्पताल में होने वाली प्रसूति में कन्या का जन्म होने पर यह कोई फीस नही लेते हैं. इनके इस अनूठे कदम का समाज पर प्रभाव पड़ा है तथा इसने एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले लिया है.  मीडिया में इनके इस प्रयास की खबर आने के बाद कई गांवों के ग्राम पंचायत अध्यक्षों ने इस बात का वचन लिया है कि वह कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लड़ाई करेंगे तथा लोगों में कन्याओं के प्रति संवेदना पैदा करेंगे. कई डॉक्टर भी इनकी इस मुहिम में शामिल हुए हैं.

छू लिया आकाश

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छू लिया आकाश वह स्वयं बोल और सुन नही सकता हैं लेकिन कारनामा ऐसा कर दिखाया कि सभी तरफ उनकी तारीफ हो रही है. केरल के 45 वर्षीय साजी थॉमस पर आज भारत समेत पूरे विश्व को गर्व है. उनके बोल और सुन ना सकने की अक्षमता के कारण लोग उन्हें नाकारा समझते थे. किंतु इससे निराश होने के बजाय उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी जिससे लोग उनकी क्षमता का लोहा मान लें.  उन्हेंने कबाड़ से सबसे सस्ता जेट विमान बना कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. जहां एक विमान 25 लाख में आता है उनका बनाया जेट मात्र 14 लाख का है. थॉमस की उपलब्धियों को डिस्कवरी चैनल पर दिखाया जाएगा. उनका नाम पहले ही India books of records में दर्ज़ हो चुका है. थॉमस ने Director General of Civil Aviation से लाईसेंस पाने के लिए अर्ज़ी दी है. वह दो इंजन वाला ऐसा विमान बनाना चाहते हैं जिसे Run way की ज़रूरत ना हो. साजी थॉमस उन लोगों के प्रेरणा स्रोत हैं जो अपनी शारीरिक कमी के कारण हार मान लेते हैं.

उतार चढ़ाव

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उतार चढ़ाव जीवन दो परस्पर विरोधी स्थितियों के बीच बहने वाली धारा का नाम है. सुख- दुख, मिलन-विक्षोह, उन्नति-अवनति सभी को इन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. यह तो प्रकृति का नियम है. उगते सूरज का अस्त अवश्य होता है. जैसे काली रात के अंत में सुबह अवश्य होती है. आप और हम प्रकृति के नियमों को बदल नही सकते. अतः समझदारी इसी में है कि इन्हें स्वीकार कर लिया जाए. सुख में, उन्नति में संयम बनाए रखें और दुख तथा अवनति के दौर में धैर्य तथा हिम्मत रखें. याद रखें संतुलन ही जीवन का सार है.

तमसो मा ज्योतिर्गमय

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शुभ दीपावली दीपावली पर्व है प्रकाश का. जब हम घरों को दीपों से सजाते हैं. यह प्रतीक है अंधकार पर प्रकाश की विजय का. यह पर्व चौदह वर्ष का वनवास काटकर  रावण का वध करके लौटे श्रीराम के अयोध्या वापसी की याद में मनाया जाता है. यह पर्व संदेश देता है कि अच्छाई से बुराई को जीता जा सकता है, अंधकार पर प्रकाश सदैव ही विजयी रहता है. आवश्यक्ता है तो बस हमारे प्रयास की. अंधेरे की शिकायत करने से कुछ नहीं मिलता है. अंधकार को मिटाने के लिए दीप जलाने पड़ते हैं. समाज में व्याप्त बुराइयों का अंत हमारे प्रयासों से ही हो सकता है. आपसी वैमनस्य प्रेम से ही दूर हो सकता है. अतः इस दीपावली जब दीप जलाएं तो उनमें से कुछ दीप प्रेम, शांति, सद्भावना, भाईचारे और एकता के नाम पर जलाएं. ताकि ऐसे समाज का निर्माण हो सके जहां आने वाली पीढ़ियां मिलजुल कर हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मना सकें. आने वाले ऐसे ही कल  की उम्मीद पर आप सभी को दीपावली की शुभ कामनाएं. ॐ   असतो   मा   सद्गमय  । तमसो   मा   ज्योतिर्गमय  । मृत्योर्मा   अमृतं   गमय  । ॐ   शान्तिः   शान्तिः   शान्तिः  ॥ यह लेख Jagranjunction.com पर प्रकाशित है

बिना बाजुओं की पायलट

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बिना बाजुओं की पायलट कुदरत यदि हमें किसी चीज़ से वंचित रखती है तो उसकी कमी पर दुखी होने की बजाय अपने हौसले से उस कमी पर विजय पाई जा सकती है. अरिजोना में जन्मी जेसिका कॉक्स इस बात का उदाहरण हैं. जन्म से ही उनकी दोनो भुजाएं नही थीं. लेकिन अपने अदम्य साहस के दम पर वह विश्व की पहली बिना बाजुओं वाली व्यक्ति बन गई हैं जिन्हें हवाई जहाज़ उड़ाने का लाईसेंस मिला है. जेसिका ने कभी भी अपनी शारीरिक कमी को अपने जीवन का रोड़ा नही बनने दिया. उन्होंने वह हर काम किया जिसे करने का खयाल उनके मन में आया. वह Taekwondo में Black belt धारक हैं. घुड़सवारी करती हैं. एक सधे हुए पियानो वादक की भांति पैरों से पियानो बजाती हैं.  अपनी भुजाओं की कमी को वह अपने पैरों से पूरा करती हैं. एक उम्र के बाद उन्होंने कृत्रिम भुजाओं का प्रयोग बंद कर सारा काम पैरों से करना आरंभ किया. उनका मानना है कि प्राकृतिक मांसपेशियों से बेहतर काम लिया जा सकता है. अपने पैरों से वह अपने रोज़मर्रा के काम तो करती ही हैं साथ ही Unmodified car भी चलाती हैं. Keyboard पर 25 शब्द प्रति मिनट के हिसाब से Type कर सकती हैं. वह एक C

जड़ों से जुड़ाव

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जड़ों से जुड़ाव कहते हैं व्यक्ति कहीं भी रहे उसे अपनी जड़ों को नही भूलना चाहिए. जो व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ा होता है वह अपनी पहचान आसानी से बना सकता है.   भारत से हजारों मील दूर ट्रिनिडाड वेस्टइंडीज़ में जन्मे चैतराम गया जी ने भी अपनी जड़ों से अपना संपर्क बनाए रखा है. भारतीय धर्म और दर्शन में रुचि रखने वाले चैतराम जी हिंदू धर्म ग्रंथों विशेषकर रामायण के पठन से वहां के हिंदू समाज को भारतीय संस्कारों से परिचित कराते हैं. वह गरीबों की सहायता भी करते हैं.  चैतरामजी के पूर्वजों को सन 1845 के करीब अंग्रेज़ों ने भारत के कई हिस्सों खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल से गन्ने के खेतों में काम करने के लिए यहां लाकर बसाया था. कालांतर में इन लोगों ने अपने परिश्रम से स्वयं फार्म खरीदे, अपने बच्चों को शिक्षित किया और वहां की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इन लोगों ने संगठित होकर रहना आरंभ किया. पीछे छूट गए अपने समाज के धर्म और संस्कार को जीवित रखने का प्रयास किया. वहां कई हिंदू मंदिरों का निर्माण किया. धार्मिक ग्रंथों के पठन पाठन की परंपरा का निर्वहन किया. इस प्रकार हजा

हम सब एक हैं

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हम सब एक हैं हम सभी अपने अपने धर्म को मानते हैं. उसका सम्मान करते है. यह अच्छी बात है. किंतु बात तब बिगड़ जाती है जब लोग दूसरे धर्म को अपने धर्म से हीन समझ कर दूसरे धर्मावलंबियों से नफरत करने लगते हैं. लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो स्वयं के धर्म का पालन करते हुए दूसरे धर्मों को पूर्ण सम्मान देते हैं. जो सभी धर्मों को समान मानते हुए उनके मानने वालों के प्रति प्रेमभाव रखते हैं.  रायपुर के राजा तालाब पंडरी निवासी केवटदास बैरागी वैष्णव ऐसे व्यक्ति हैं जो सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते हुए उनका सम्मान करते हैं. शिव तथा हनुमान के भक्त बैरागी इस्लाम धर्म के प्रति भी पूर्ण श्रद्धा रखते हैं. यही कारण है कि दस सालों से भी अधिक समय से वह रमज़ान के मौके पर अपने गांव के मुसलमानों को सहरी के लिए जगाते हैं. इसके लिए वह रात को 2 बजे जागकर सफेद कुर्ता पजामा पहन कर ढोलक की थाप पर नात-ए-पाक गाते हुए गांव की गलियों से गुजरते हैं. उनकी आवाज सुनकर मुसलमान जाग जाते हैं. इसके बाद घर लौटकर वह पूजा पाठ कर खिलैने बेचने के अपने काम पर निकल जाते हैं. केवटदास का कहना है कि हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं

हौसला अभी बाकी है मेरे दोस्त

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हौसला अभी बाकी है मेरे दोस्त भले ही ज़िंदगी जीने के लिए जिस्म का होना ज़रूरी है लेकिन ज़िंदगी जिस्म में कैद नही है. वह तो हमारे हौसले पर टिकी है. इस बात को साबित कर दिखाया है भिवंडी महाराष्ट्र के आदिल अंसारी ने. इनका 90 फीसदी जिस्म Paralyzed है किंतु यदि इनकी उपलब्धियों पर नज़र डालें तो दांतों तले उंगली दबा लेंगे. आदिल ने 14 National Paralympic swimming championship की 50 meter Freestyle and Backstroke पुरुष वर्ग में दो स्वर्ण पदक जीते हैं अपनी Modified car को 6000 Km. Drive कर Limca books of records में अपना नाम दर्ज़ कराया है. इसके अलावा अपनी Modified Honda Active bike में एक लंबी दूरी तय की है. यही नही आदिल एक दवा वितरण करने वाली कंपनी के मालिक हैं. बचपन से ही तैराकी का शौक रखने वाले आदिल अक्सर ही नदी में तैरने जाते थे. 16 मई 2006 को उन्होंने इसी उद्देश्य से छलांग लगाई. लेकिन दुर्भाग्यवश एक पत्थर से टकरा कर उनकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई. इस दुर्घटना के कारण उनका 90 प्रतिशत शरीर Paralyze हो गया. लेकिन उनके भीतर गज़ब का जुझारूपन है जिसने उनके हौसले को झुकने नही दि

क्यूंकि ज़िन्दगी तो फिर भी प्यारी है !

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क्यूंकि ज़िन्दगी तो फिर भी प्यारी है ! बस एक ही बात , हमेशा दिल में और दिमाग है , के कितनी भी मुश्किलें , कितनी भी तकलीफों का सामना करना पढ़े , ज़िन्दगी जो है , फिर भी प्यारी है !  दिल्ली में ही पैदाईश हुई और यहीं  सारी शिक्षा भी हासिल की !  बचपन से ही  पढाई लिखाई , में काफी अच्छा था , और काफी हसमुख  मिजाज़ भी  , पर साथ में  पोलियो और एक ऐसी बीमारी से जूझ रहा था , जिसे स्कोलियोसिस ( एक तरह की स्पाइनल डेफॉर्मिटी ) कहते हैं , इलाज के लिए दिल्ली का कोई सरकारी हॉस्पिटल नहीं छोड़ा , समय समय पर बढ़ी बढ़ी जानलेवा सर्जरी का सामना भी  करना पढ़ा और जैसे इन सब की आदत सी हों गयी थी , हालाँकि इन सब की  वजह से , कई बार कॉलेज स्कूल भी ड्राप करना पड़ा , कई बार धार्मिक/असक्षमता को लेके स्कूल में एडमिशन के लिए/ समाज में भेदभाओँ का भी सामना किया ,  पर तब भी हार नहीं मानी  ! हालांकि तभी पापा का एक्सीडेंट मेरी ग्रेजुएशन के टाइम पर  हुआ और उनको घर बैठना पड़ा ,  तब घर में माली हालत बिगड़ने लगे   और आखिर में फीस के लिए , पीसीओ , टुशंस , मोबाइल रिपेयरिंग वर्क्स , स्कॉलरशिप्स के सहारे , उच्च शिक्षा  हासिल कर , दो स

स्वयं को स्वीकार करें

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स्वयं को स्वीकार करें दूसरे आपके बारे में क्या राय रखते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने बारे में क्या राय रखते हैं. यदि आप आत्मविश्वास के साथ लोगों से मिलतेे हैं और स्वयं की शारीरिक अक्षमता को अपनी बाधा नही समझते तो लोग आपको वही प्यार और सम्मान देंगे जिसके आप हकदार हैं. ऐसी ही सोंच रखने वाले हैं पंचकुला हरियाणा के रहने वाले सुमित मेहता. 32 वर्षीय सुमित Congenital Myopathy नामक बीमारी से ग्रसित हैं. स्वयं को अक्षम ना समझने वाले तथा आत्मविश्वास से भरे सुमित Independent IT consultant एवं Software engineer हैं. इसके अतिरिक्त सुमित शास्त्रीय संगीत में स्नातक हैं तथा इन्होंने 9 सालों तक गायन की शिक्षा ली है. शारीरिक चुनैती के बावजूद सुमित का बचपन सामान्य बच्चों की तरह ही बीता. अपनी Tricycle पर बैठ कर वह हमउम्र बच्चों के साथ निकल जाते और खूब मस्ती करते. अपने मोहल्ले में वह सभी के प्रिय थे. अपने पराए सभी से घुलमिल जाते थे. उनके इस खुले व्यवहार का कारण उनके माता पिता की प्रेरणा ही थी जो सदैव सुमित को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते कि वह खुद को किसी से भी कम ना समझें.  बचप

क़ौमी एकता का प्रतीक बनी रामलीला

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क़ौमी एकता का प्रतीक बनी रामलीला संपूर्ण उत्तर भारत में दशहरे के आस पास रामलीला का आयोजन होता है. इसके अंतर्गत भगवान राम के जीवन की घटनाओं  को मंचित किया जाता है. बहुत बड़ी संख्या में लोग रामलीला देखने जाते हैं. यूं तो रामलीला हिंदुओं के आराध्य प्रभु श्री रामचंद्र के जीवन की झांकी प्रस्तुत करती है लेकिन यह हमारी गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल भी है. वाराणसी के रामपुर इलाके में बहुसंख्यक मुसलमान समुदाय कई पीढ़ियों से रामलीला के आयोजन में सहायता करता रहा है. यहां रामलीला के मंचन की परंपरा सवा दो सौ साल पुरानी है. इस परंपरा के निर्वाह में मुसलमान समुदाय बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. पात्रों की पोशाक सिलने का काम हो या मंच की सज्जा का सभी काम मुस्लिम बिरादरी द्वारा किए जाते हैं.  मालटारी के बाजार में पिछले पैंतीस वर्षों से हो रही रामलीला भी हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. छह दिनो तक चलने वाली इस रामलीला की शुरुआत 1977 में मुहम्मद अली हसन ने की थी. तब से वही इसका संचालन कर रहे हैं. पूरे क्षेत्र में प्रचलित इस रामलीला को देखने हिंदू मुसलमान बड़ी तादाद में देखने आते हैं. बिहार के बक्सर

दीप से दीप जले

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दीप से दीप जले जैसे एक दीपक अनेक दीपों को प्रज्वलित कर सकता है वैसे ही एक व्यक्ति अपने अच्छे कार्यों से कई और लोगों को प्रेरित करता है. हमारे देश में प्रत्यारोपण के लिए अंगों की प्रतीक्षा करने वालों की एक बड़ी संख्या है. कारण है अंगदान को लेकर लोगों में कई प्रकार की भ्रांतियां हैं. इस विषय में लोग पूर्णरूप से जागरूक नही हैं. अक्सर यदि हम अंगदान करते भी हैं तो केवल अपने किसी बेहद नज़दीकी रिश्तेदार को. किसी अपरिचित को बिना किसी स्वार्थ के अंगदान करना हममें से बहुत से लोगों की सोंच से परे है. लेकिन ऐसा कर दिखाया है केरल के त्रिशूर जिले के पादरी फादर डेविस चिरामेल ने. लोगों को प्रेम दया तथा सेवाभाव की शिक्षा देने वाले पादरी ने अपने उदाहरण से लोगों को निस्वार्थ सेवा का संदेश दिया है.  बात सन 2009 की है जब समाज सेवा के लिए विख्यात फादर डेविस को कुछ लोगों ने सूचित किया कि उनके इलाके के एक व्यक्ति गोपीनाथन जो पेशे से एक Electrician हैं को एक किडनी की आवश्यक्ता है. फादर ने उनकी सहायता के लिए पैसे एकत्र करने आरंभ किए. वह उनके पास मदद को पहुंचे और पूंछा कि किडनी देने वाला कौन है. ग

हार नही मानूंगा

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हार नही मानूंगा हमारी फौज के जवान सरहद पर बड़ी दिलेरी के साथ हमारी रक्षा करते हैं. देश पर हमला होने पर अपने पराक्रम से दुश्मनों के दांत खट्टे कर देते हैं.  लेकिन सरहद से दूर भी वह अपने हौंसले और हिम्मत से लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. मेजर देवेन्द्र पाल सिंह ऐसे ही हौंसले की मिसाल हैं. 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान एक Mortar bomb उनके पास आकर गिरा और फट गया. जब उनके साथी जवान उन्हें लेकर Field hospital पहुँचे तब वह ख़ून से सने हुए थे और बुरी तरह घायल थे. Army surgeon ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और उन्हें अस्थाई मुर्दाघर में भेज दिया. Army hospital के एक अन्य डॉक्टर ने उनमें जीवन के क्षीण से लक्षण देखे. हंलाकी Mortar bomb के इतने नज़दीक फटने पर जीवित बच पाना मुश्किल था. उनका पेट खुला हुआ था और आंत का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था. मजबूरन डॉक्टरों को उनकी आंत निकालनी पड़ी. उनका एक पांव काटना पड़ा किंतु उनकी जिजीविषा के आगे मौत भी हार गई. यह उनकी जीने की चाह ही थी जिसने बम के फटने से पहले उन्हें कूद जाने के लिए प्रेरित किया. अन्यथा उनकी मौके पर ही मौत हो जाती. इस स्थिति के ब

किरन की आशा

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किरन की आशा उन झुग्गी बस्तियों में जहाँ चारों तरफ गंदगी गरीबी और अशिक्षा फैली हो वहाँ आशा का संचार करने वाली हैं डॉ. किरन मार्टिन. इन्होंने ASHA society नामक एक NGO की स्थापना की जिसका उद्देश्य समाज के पिछड़े वर्ग तथा महिलाओं को समानता शिक्षा तथा स्वास्थ का अधिकार दिलाना है. डॉ. किरन एक Pediatrician हैं जो अपने अपने NGO के द्वारा समाज की सेवा करती हैं. उनके जीवन में परिवर्तन तब आया जब 1988 में दक्षिणी दिल्ली की डॉ. अम्बेदकर झुग्गी बस्ती में Cholera फैल गया. वहाँ के हालात देख कर उन्होंने निश्चय किया कि वह समाज के गरीब और पिछड़े लोगों के लिए कुछ करेंगी. अतः अपनी जैसी सोंच रखने वाले लोगों को एकत्रित कर उन्होंने ASHA Society का निर्माण किया. ASHA ने अपने कार्यक्रमों द्वारा 4 लाख से अधिक लोगों को लाभ पहुँचाया है. 50 से अधिक दिल्ली की झुग्गी बस्तियों को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया. झुग्गी बस्ती में रहने वाले होनहार विद्यार्थियों के लिए ASHA ने एक विशेष कार्यक्रम Education for slum children चलाया जिसके द्वारा कई बच्चों को उच्च शिक्षा पाने में मदद मिली. Dr किरन को उनके