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सेवा ही परम धर्म है इनका

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  सेवा ही परम धर्म है सड़क पर चलते हुए कई बार हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो यूं ही सड़कों पर घूमते रहते हैं। जो मिल गया खा लिया। किसी भी जगह लेट या बैठ जाते हैं। इन लोगों के बाल बेतरतीब बढ़े हुए एवं उलझे रहते हैं। तन पर मैले कुचैले कपड़े होते हैं।‌ ना नहाने के कारण शरीर पर मैल की परतें जमा होती हैं। कई बार शरीर पर घाव होते हैं जिनमें कीड़े पड़े होते हैं।  ऐसे सब लोगों को हम पागल कह कर दुत्कार देते हैं। अपने आसपास भी भटकने नहीं देते। हमारे लिए इनका अस्तित्व समाज पर एक भार से अधिक कुछ नहीं होता है।  पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की सेवा ही अपना सबसे बड़ा धर्म समझते हैं। डॉ. संजय कुमार शर्मा ऐसे ही एक व्यक्ति हैं। जो मानव सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म मानते हुए विगत 28 वर्षों से मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के मसीहा बने हुए हैं।  उनका ना तो कोई NGO है और ना ही इन्हें कोई सरकारी सहायता प्राप्त है। यह सेवा का कार्य डॉ. संजय कुमार शर्मा अपने खर्च पर करते हैं।  सड़क पर भटकते मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को खाना देना, दवाइयां देना, उनके कपड़े बदलवाना, नहलाना, उनके घावों

अवकाश ग्रहण की उम्र में नया आरंभ

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            अवकाश ग्रहण की उम्र में नया आरंभ अमूमन 60 साल की उम्र अपने कार्यक्षेत्र से अवकाश ग्रहण करने की मानी जाती है। लेकिन 65 साल की उम्र में एक नए क्षेत्र में कदम रखना सचमुच साहस का काम है। परंतु एस भाग्यम शर्मा जी ने ना सिर्फ यह साहस दिखाया बल्कि अपने चुने हुए क्षेत्र में अपनी एक पहचान भी बनाई। साहित्य के क्षेत्र में एस भाग्यम शर्मा जी एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उनका जन्म 18 मार्च 1944 को तमिलनाडु के ऊटकमंड में हुआ था। उन्हें बचपन से ही साहित्य में रुचि थी। अपनी पढ़ाई के साथ साथ उन्हें जो उपन्यास व कहानी मिलती थी पढ़ लेती थीं। विवाह के बाद ससुराल में भी उन्हें पढ़ने का माहौल मिला। उनके पति स्वयं भी एक लेखक थे। उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था। जिसके कारण घर में पुस्तकों के साथ तत्कालीन कई प्रसिद्ध पत्रिकाएं भी आती थीं। एस भाग्यम शर्मा जी भी उन्हें पढ़ती रहती थीं। इस तरह एक पाठिका के तौर पर उनका साहित्य से गहरा जुड़ाव था।  पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के साथ साथ एस भाग्यम शर्मा जी ने 28 साल तक शिक्षण का कार्य किया। अवकाश ग्रहण करने के बाद एस भाग्यम शर्मा जी के मन में अक्सर आता था कि उन्ह

अनोखी व्हीलचेयर

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                        अनोखी व्हीलचेयर जब कोई व्यक्ति शारीरिक चुनौती का सामना करता है तो सहायक उपकरण ही उसके जीवन को सुगम बनाते हैं। चलने फिरने में असमर्थ लोगों के लिए व्हीलचेयर एक ऐसा सहायक उपकरण होता है जिसकी सहायता से उन लोगों को आवागमन में बहुत सहायता मिलती है। एक व्हीलचेयर ऐसे व्यक्तियों को स्वावलंबी बनने में मदद करती है। परंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि आज भी हमारे देश में ऐसे स्थानों की कमी है जो व्हीलचेयर का प्रयोग करने वालों को आवागमन की सुगमता प्रदान कर सकें। अधिकांश स्थानों पर सीढ़ियां होती हैं। जिन पर व्हीलचेयर का चढ़ पाना सुगम नहीं होता है। सीढ़ियां ना भी हों तो अधिकतर धरातल बहुत ऊँचे नीचे होते हैं। जिन पर व्हीलचेयर चलाना कठिन होता है। व्हीलचेयर का प्रयोग करने वालों की इन समस्याओं को समझ कर आविष्कारक और वैज्ञानिक रियाज़ रफीक़ ने एक अनोखी व्हीलचेयर का निर्माण किया है। इस अनोखी व्हीलचेयर की एक खासियत यह है कि इसकी सहायता से सीढ़ियां भी आसानी से चढ़ी जा सकती हैं। व्हीलचेयर में एक खास तरह का मेकेनिज्म प्रयोग किया गया है। इस मैकेनिज्म के प्रयोग की वजह से उपयोगकर्ता को केवल अपनी व