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सितंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धार्मिक सद्भाव

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धार्मिक सद्भाव  जहाँ अक्सर हमें धर्म के नाम पर होने वाले दंगों के बारे में सुनते रहते हैं वहीं अंधेरे में प्रकाश किरण बनकर कुछ किस्से ऐसे सुनाई देते हैं जो समाज को अमन और प्यार का संदेश देते हैं. पंजाब के सरवरपुर गांव के निवासी जोगा सिंह ने आपसी भाईचारे की ऐसी ही मिसाल पेश की है. दरअसल सिक्खों के इस गांव में केवल 10 मस्लिम परिवार हैं. इबादत के लिए वहाँ एक भी मस्जिद नही थी. क्योंकी गांव की  मस्जिद दंगों में ध्वस्त हो गई थी. पेशे से किसान जोगा सिंह को यह बात अच्छी नही लगती थी कि उनके गांव के मुसलमानों को दस कि.मी. दूर जुम्मे तथा ईद की नमाज़ के लिए जाना पड़ता है. अतः उन्होंने बर्मिंघम में बसे अपने भाई से मदद मांगी. भाई की मदद और गांव वालों के सहयोग से गांव में नई मस्जिद का निर्माण किया गया. जोगा सिंह का कहना है कि मस्जिद का निर्माण कर हमने अपने कर्तव्य का पालन किया है. https://youtu.be/zVSCB5mYJi4 https://youtu.be/zVSCB5mYJi4

सकारात्मक्ता के प्रतीक

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सकारात्मक्ता के प्रतीक Paralysis of Cervical cord  उस स्थिति को कहते हैं जहाँ रीढ़ की हड्डी के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण गर्दन के नीचे के हिस्से में कोई भी चेतना नही रह जाती है. अतः शरीर के अंगों पर कोई नियंत्रण नही रह जाता और व्यक्ति की नवजात शिशु के समान देखभाल करनी पड़ती है. ज़रा सोंच कर देखिए यदि युवावस्था में जब कोई अपने कैरियर के शिखर पर हो, अचानक यदि उसे इस स्थिति का सामना करना पड़े तो उस पर क्या बीतेगी. उसके लिए जीवन एक दुस्वप्न बन जाएगा. केवल 29 वर्ष की आयु में गिरीश गोगिआ के साथ ऐसा ही हादसा हुआ. जब एक Architect के तौर पर उनका कैरियर बहुत अच्छा चल रहा था गोवा में समुद्र में गोता लगाने के दौरान उनकी Cervical cord बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई. इस दुर्घटना के कारण गिरीश शारीरिक रूप से अक्षम हो गए. अचानक स्वयं को अस्पताल के बिस्तर पर पाकर गिरीश हताशा में डूब गए. स्वयं को हिला तक ना पाने की लाचारी उनकी आँखों में आंसू ले आती थी. जब करने को कुछ नहीं था तब उनके दिमाग में अनेक प्रकार के विचार उत्पन्न होते थे. इस दौरान उन्होंने अनुभव किया कि विचारों का आप पर बहुत अधिक प्रभाव पड

गणपति बप्पा मोरिया

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गणपति बप्पा मोरिया  देश के कई हिस्सों खासकर महाराष्ट्र में गणेश उत्सव बहुत धूमधाम से बनाया जाता है. भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के तौर पर मनाया जाता है. इसी दिन से गणेश उत्सव का आरंभ होता है जो अगले दस दिनों तक चलता है.  इसके लिए विशाल पंडाल बनाए जाते हैं जिनमे गजानन की विभिन्न मुद्राओं वाली प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की जाती है. प्रतिदिन प्रातः एवं संध्या काल में पूरे विधिविधान से गणपति की पूजा अर्चना और आरती की जाती है. लम्बोदर के प्रिय मोदकों का भोग लगाया जाता है. पंडालों की सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाता है. गणेश उत्सव समितियों द्वारा कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. उत्सव के अंत में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया जाता है. गणपति को विदा करते हुए लोग भावुक हो जाते हैं और विघ्नहर्ता से विनय करते हैं कि अगले वर्ष जल्दी आएं.  कुछ लोग घरों में भी गणपति की प्रतिमा स्थापित करते हैं. इसकी अवधि 3,5 या 11 दिन हो सकती है. जिसके बाद प्रतिमाओं का विसर्जन होता है. लोग बेसब्री से अगले वर्ष की प्रतीक्षा करते हैं ताकी प्यारे बप्पा का पुनः स्वागत कर सकें.

लक्ष्य तो हर हाल में पाना है

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लक्ष्य तो हर हाल में पाना है कहते हैं जो अपना सब कुछ लक्ष्य पर कुर्बान करने को तैयार होते हैं वह अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करते हैं. ऐसे ही जज़्बे की मिसाल हैं युवराज बाल्मीकी. Club तथा Regional hockey खेलने वाले युवराज को तब धक्का लगा जब 2009 में Junior world cup hockey team के लिए चुने जाने के बावजूद आखिरी क्षणों में उन्हें drop कर दिया गया. किंतु हिम्मत के धनी युवराज ने हार नही मानी. युवराज का जन्म मुंबई की Marine lines slum में हुआ था. इनके पिता एक Taxi driver तथा माँ एक गृहणी थीं. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी किंतु फिर भी युुवराज के माता पिता ने उन्हें तथा उनके भाइ़यों को स्कूल भेजने की व्यवस्था की. घर में बिजली पानी तथा शौचालय जैसी सुविधाओं का आभाव था. लेकिन इस माहौल में भी युवराज में कुछ कर दिखाने की चाह थी. उन्होंने एक खिलाडी़ बनने का निश्चय किया. पहले उनकी रुचि क्रिकेट में थी किंतु महंगी Training fees तथा Kit के कारण उन्होंने अपना इरादा त्याग दिया.  एक दिन युवराज की नज़र समाचारपत्र में छपे अपने एक सहपाठी बून डिसूजा़ के चित्र पर पडी़. बून मुंबई के एक प्रसिद्ध हॉकी क

हमारी प्यारी भाषा हिंदी

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हमारी प्यारी भाषा हिंदी  आज हिंदी दिवस है।  विश्न भर में बोली जाने वाली हमारी प्यारी भाषा को समर्पित दिन।   इस भाषा को समृध्द करने में कई साहित्यकारों का योगदान रहा है।  गद्य हो या पद्य दोनों का ही विशाल कोष उपलब्ध है।  जहाँ कबीरदास और रहीमदास के नीति उपदेशक दोहे हैं वहीं सूरदास और रसखा़न और मीरा के कृष्ण भक्ति के पद।  श्रृंगार रस है तो वीर रस भी है।  हमारी प्यारी हिंदी सहित्यिक रूप से बहुत अमीर है।  सहजता के कारण यह जनसाधारण की भाषा है।  यह जितनी विशाल है उतनी ही उदार भी. अंग्रेजी़ एवं उर्दू के कई शब्दों को इसने सहजता से अपनाया है।  कई गै़र हिंदी भाषी इसे अपने प्रकार से बोलते हैं।  जिसमें उनका प्रांतीय असर दिखाई देता है।  इसने कई प्रकार के लहज़ों को जन्म दिया है तथा हिंदी को एक लोकप्रिय भाषा बनने में मदद की है।  हमें भी इस सुंदर भाषा के प्रचार में अपनी सार्मथ्य के अनुसार प्रयास करना चाहिए। 

चक दे रानी

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चक दे रानी              हरियाणा जहाँ लिंग अनुपात सबसे कम है वहाँ की एक बेटी ने फिर अपनी काबिलियत साबित की है।  भारत  के राष्ट्रीय खेल हॉकी में भारत को 2016 के Olympics खेलों के लिए Qualify कराने में इनकी विशेष भूमिका रही।  पुरूष प्रधान समाज में खेल की दुनिया में अपना मकाम बनाना कोई आसान काम नहीं था।  लेकिन अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास के दम पर उन्होंने इसे संभव कर दिखाया।  रानी का जन्म हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के शाहाबाद में एक निर्धन परिवार में हुआ था।  इनके पिता ठेला गाड़ी चलाते थे।  घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।  किंतु हालातों से हार नहीं मानी।  अर्जुन पुरुस्कार से सम्मानित बलदेव सिंह की देखरेख में रानी ने Shahabad hockey academy में Training लेना आरंभ किया।  Go sports foundation एक ग़ैर सरकारी संस्था ने आर्थिक रूप से उनकी सहायता की।  June 2009 में कज़ान रूस में आयोजित Champion's challenge Tournament में Final match में 4 goals करके इन्होंने भारत को विजय दिलाई। इन्हें Top  goal scorer एवं Young player of the tournament का ख़िताब मिला। 2009 Nov. के Asia cup  में

अम्मा

अम्मा आज मेरी माँ स्वर्गीय श्रीमती आनंद कुमारी त्रिवेदी की पुण्य तिथी है।  आठ वर्ष पूर्व वह हमें छोड़ कर चली गईं।  किंतु उनकी स्मृतियां सदैव मेरे साथ रहेंगी और मुझे संबल प्रदान करेंगी।  उन्होंने मुझे जीवन तो प्रदान किया ही किंतु उसे उपयोगी बना सकूं उसके योग्य भी बनाया।  किसी के जीवन को उपयोगी और अर्थपूर्ण बनाने में शिक्षा का विशेष महत्व होता है।  लेकिन मेरी शारीरिक अवस्था में शिक्षा का महत्व और अधिक था।  इस बात को समझते हुए उन्होंने मुझे शिक्षित करने का निश्चय किया।  यह कार्य आसान नहीं था।  मुझे रोज स्कूल पहुँचाना और छुट्टी में वापस लाना  उन्हें मेरे छोटे भाई तथा दो बडी़ बहनों की परवरिश करने के साथ साथ एक गृहणी के अन्य कर्तव्य भी निभाने पड़ते थे।  इस काम  में मेरे पिता भाई तथा बहनों का भी सहयोग प्राप्त हुआ।  किंतु इस कठिन कार्य का प्रारंभ करने का श्रेय मेरी माँ को ही जाता है।  इस कार्य में सबसे पहली मुश्किल मेरे स्कूल के दाखिले में आई।  बचपन में मैं बहुत ही दुर्बल था।  अतः स्कूल के प्रधानाचार्य को इस बात का संदेह था कि मैं शिक्षा प्राप्त करने के योग्य हूँ भी कि नही।  अतः मेरी माँ न

कर्म मुक्ति का उपाय

प्रायः लोग कहते हैं की मनुष्य ईश्वर के हाथ की कठपुतली है जिसकी डोर उसके हाथों में है। वह जैसे चाहता है हमें नचाता है। अतः प्रश्न उठता है की यदि हम सच में ईश्वर के हाथ की कठपुतली हैं और वह हमें अपने हिसाब से नचा रहा है तो फिर कर्म के सिद्धांत का क्या महत्व है। फिर कैसे हम अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी हैं। एक सोंच यह भी है की जीवन में सब कुछ पूर्वनिर्धारित है। जो होना है वह होकर रहेगा। यदि ऐसा है तो फिर कर्म का जीवन में कोई स्थान ही नहीं है। कर्म का सिद्धांत निरर्थक है। क्योंकि फिर न तो हमारे लिए करने को कुछ है और न ही हम किसी कार्य के प्रति उत्तरदायी हैं। क्योंकि हुआ वही जो होना था। किन्तु स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने भगवद गीता में कर्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। श्री कृष्ण कहते हैं की मनुष्य को किसी  भी परिस्तिथि में अकर्म में लिप्त नहीं होना चाहिए। कर्म ही जीव का धर्म है। जीव के गुण के अनुसार उसका कर्म पृथक पृथक हो सकता है। सतोगुणी मनष्य सत्कर्म करता है। रजोगुणी मनुष्य अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर उनकी पूर्ति के लिए कर्म करता है। तमोगुणी मनुष्य सदैव बुरे कर्मों के प्रति आकर्षि