संघर्षों को चुनौती
संघर्षों को चुनौती एक दलित स्त्री जो पोलियो से पीड़ित हो। उसका संघर्ष तीन तरफा हो जाता है। किंतु फिर भी इन्होंने हार नहीं मानी। सभी संघर्षों को डट कर चुनौती दी। एेसे साहस की मिसाल हैं गौरी कुमार। बिहार के मुंगेर जिले में जन्मी गौरी के पिता एक सफाई कर्मचारी थे। बचपन में वह पोलियोग्रस्त हो गईं। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी किंतु उनकी माँ चाहती थीं कि वह पढा़ई करें। लेकिन घर पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पडा़ जब उनकी माँ की मृत्यु हो गई और पिता का काम भी छूट गया। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। सरकारी छात्रवृत्ति की मदद से उन्होंने पढा़ई जारी रखी और एक वकील बनीं। अपने पेशे को उन्होंन दलितों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में प्रयोग किया। अपने जिले के स्थानीय चुनाव में खडी़ हुईं और 5 वर्षों तक ward council के सदस्य के तौर पर कार्य किया। वह बिहार की पहली दलित महिला वकील थीं जिन्हे Juvenile Justice Board के सदस्य के रूप में चुना गया। उन्होंने राजनीति में कदम जमाने का प्रयास किया किंतु वह माहौल उन्हें रास नहीं आया। अतः उन्होंने एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार