रिश्ते बहुमूल्य निधि

सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सभी रिश्तों से घिरे रहते हैं। रिश्ते सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार होते हैं। रिश्ते हमें आपस में बांधे रहते हैं। हमारे रिश्ते जितने मज़बूत होते हैं सामजिक ढांचा उतना ही मज़बूत बनता है।
प्रेम संबंधों को सबल बनाता है। स्वस्थ संबंधों के लिए आवश्यक है की हमारे बीच एक दूसरे के लिए आदर तथा आपसी समझबूझ हो। एक दूसरे के हित लिए अपने  निजी स्वार्थों का त्याग रिश्तों को दीर्घायु बनाता है। रिश्ते हमें बहुत कुछ देते हैं। आपसी प्रेम एवं सहयोग तथा एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना हमें पूर्णता प्रदान करती है।
एक रिश्ते को बनाये रखने का दायित्व उसमें सम्मिलित दोनों पक्षों का होता है। केवल एक पक्ष रिश्ते को नहीं बनाए रख सकता है। यदि एक व्यक्ति ही इस दिशा में प्रयास करता है तथा दूसरा उदासीन रहता है तो एक स्वस्थ रिश्ता कायम नहीं हो सकता है। ऐसा रिश्ता सामान्य नहीं होगा। उस रिश्ते में रहने वाला व्यक्ति घुटन महसूस करेगा। उदासीनता एवं उपेक्षा अक्सर सीधे तौर  पर जताई गयी घृणा से भी अधिक तकलीफ देती है।
संबंधों में माधुर्य बनाए रखने के लिए आवश्यक है की जिस प्रेम, विश्वास तथा सम्मान की हम दूसरों से अपेक्षा करते हैं वही हम दूसरों को भी दें।
रिश्तों में तनाव तब आता है जब हम दूसरों से अपेक्षाएं तो रखते हैं किन्तु स्वयं दूसरों के लिए कुछ नहीं करते हैं। रिश्ते एक तरफा व्यवहार से नहीं चलते हैं। रिश्तों को बनाये रखने के लिए दोनों पक्षों का सहयोग एवं समर्पण आवश्यक है।
अहम् रिश्तों का सबसे बड़ा शत्रु  है। जब अहम् का प्रवेश हमारे संबंधो में होता है तो यह दीमक की भांति उसकी जड़ों को खोखला कर देता है। यह किसी भी रिश्ते में तनाव पूर्ण स्तिथि ले आता है। अहम् व्यक्ति को आत्म केन्द्रित बनाता है। इसके कारण दूसरे के प्रति प्रेम तथा सम्मान की भावना का लोप हो जाता है। व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ के बारे में ही सोंचता है। ऐसे में बात बात पर तर्क और एक दूसरे पर दोषारोपण का दौर चलने लगता है। यह स्तिथि रिश्ते में ह्रास का कारण बनती है।
    "अहम् को कभी अपने ह्रदय में स्थान न दें, प्रेम की भावना को कभी अपने ह्रदय से न जानें दें।"
[स्वामी विवेकानंद]

संदेह भी रिश्तों के टूटने का प्रमुख कारण है। किसी भी रिश्ते के लिए आवश्यक है की दोनों पक्ष एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास रखें। इसके लिए संबंधों में पारदर्शिता अति आवश्यक है। संदेह रिश्तों में ज़हर घोल देता है। संदेह वह तलवार है जो रिश्तों को लहुलुहान कर देती है।
रिश्तों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। संबंधों से मिलने वाली ऊर्जा हमें भावनात्मक रूप से सबल बनती है तथा हमारे विकास में सहायक होती है। अतः संबंधों की मर्यादा को बनाए रखना हमारा कर्त्तव्य है।
" संबंध जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं किन्तु उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि संबंधों में सजीवता रहे।"


 [स्वामी विवेकानंद]


" खुशियों का  हमारे जीवन में तभी महत्त्व है जब उन्हें हमारे साथ बाटने वाले मित्र तथा प्रियजन हमारे साथ हों।"







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