कर दिखाना है.....








कुछ बड़ा करना है तो ज़िद ठाननी पड़ती है। आने वाली तकलीफों से डरने की जगह उनका सामना करने की हिम्मत पैदा करनी पड़ती है। अगर आप ज़िद ठान लें कि कुछ कर दिखाना है तो परेशानियां आपको डराती नहीं हैं।
ऐसी ही एक ज़िद ठानी हिंदुस्तान के पारा तैराक मोहम्मद शम्स आलम शेख ने। अपने हौसले से उन्होंने अपना नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में सबसे तेज़ पारा तैराक के रूप में दर्ज़ करा लिया।
वैसे तो शम्स अपने नाम पहले ही कई रिकॉर्ड्स दर्ज़ करा चुके हैं।  पर जब शम्स पता चला कि इनके राज्य बिहार में मिश्रीलाल शीतकालीन तैराकी प्रतियोगिता होने वाली है तो इन्होंने उसमें हिस्सा लेकर कुछ कर दिखाने की ठानी।
इनके स्विमिंग कोच शशांक कुमार ने  बताया कि हर साल मिश्रीलाल शीतकालीन तैराकी प्रतियोगिता गंगा नदी में होती है। जो कि 8 दिसंबर 2019 को होने वाली है । पटना में आयोजित इस प्रतियोगिता में तैराक को गंगा नदी में दो किलोमीटर की दूरी तैर कर पार करनी होती है।
शम्स के मन में आया कि इस प्रतियोगिता में भाग लेकर कुछ कर दिखाया जाए। पर जब इनके कोच का फोन आया था तब दिसंबर की शुरुआत हो चुकी थी। समय बहुत कम था। पर मन में लगन थी। शम्स ने ट्रेन टिकट चेक किया। लेकिन उसकी उपलब्धता नहीं थी। फ्लाइट की टिकट मिल सकती थी पर बहुत महंगी थी ।लेकिन शम्स ने दिल में ठान लिया था कि चाहें कितनी कठिनाईयां आएं पर जाना है।
शम्स सात तारीख की शाम पक्के इरादे के साथ शम्स नई दिल्ली स्टेशन पहुंचे और संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस की जनरल टिकट ले ली। उस ट्रेन में दिव्यांग जनों के लिए कोई डब्बा नहीं होता है। बड़ी कठिनाई के साथ लोगों की मदद से शम्स जनरल डब्बे में चढ़ गए। पहले तो लोगों को लगा शायद उनका टिकट कन्फर्म है और उनके साथ में कोई होगा लेकिन  बाद में जब उन्हें पता चला कि उनके साथ कोई नहीं है तो लोग कहने लगे भाई आप तो दिव्यांग हैं। आपको दिव्यांग कोच में जाना चाहिए था। इसमें क्यों चढ़ गए। कुछ लोगों ने बेवजह तरस खाना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि रहने दो भाई अब बेचारा चढ़ गया है तो क्या करेगा। सुपरफास्ट ट्रेन है और कुछ घंटे का सफर है।
शम्स अपनी व्हीलचेयर पर ही बैठे हुए थे।12 से 15 घंटे का सफर व्हीलचेयर पर बैठे हुए ही तय करना था। जनरल डब्बे में दिव्यांग जनों के लिए वॉशरूम एसेसिबिलिटी भी नही होती है। ट्रेन के किसी को कुछ बोल भी नहीं सकते थे।
तकलीफ बहुत थी। पर दिमाग में एक ही बात चल रही थी था कि भले ही साथ सफर कर रहे लोग इस वक्त उन्हें बेचारा समझ कर मन ही मन तरह खा रहे हों पर  जब कल वह स्विमिंग करके अपना लक्ष्य पूरा करेंगे तो यह खबर कितने ही अखबारों में आएगी। कितने सारे लोग पढ़ेंगे। कितने सारे लोगों को इससे हौसला मिलेगा। वह प्रोत्साहित होंगे।
कितने लोग जो दिव्यांग हैं। जिन्हें अपाहिज कह कर लोग सोचते हैं कि यह कुछ नहीं कर सकते हैं। उनकी राय उनकी वजह से बदलेगी। जो स्वयं इन परिस्थितियों में हार मानकर बैठे हैं।समझते हैं कि दिव्यांगता के बाद हमारी जिंदगी खत्म हो गई है। वह भी कुछ करने को प्रेरित होंगे। यही सोचते हुए शम्स ने सारी तकलीफें सह लीं।
लंबा सफर तय करने के बाद जब शम्स पटना पहुंचे तब प्लेटफार्म नंबर चार पर उन्हें एक वॉशरूम मिला जिसे वह इस्तेमाल कर सकते थे। वॉशरूम में फ्रेश होकर बहुत अच्छा लगा।
सुबह के 7 बज रहे थे। फ्रेश हने के बाद शम्स वेटिंग रूम में गए। थोड़ी देर अपना मोबाइल चार्ज किया। वहाँ बहुत अच्छी मधुबनी पेंटिंग बनी हुई थी। उस मधुबनी पेंटिंग को देखकर उन्हें ऐसा लगा कि वह अपने गांव में आ गए हैं।
कुछ देर आराम करने के वह अपने सफर पर बाहर निकले। एक रिक्शा पकड़ा और कहा कि उन्हें पटना के लॉ कॉलेज घाट जाना है। रिक्शे वाले ने ₹300 मांगे। महज चार पांच किलोमीटर के सफर के लिए यह बहुत था। उस रिक्शे को छोड़ दिया। ओला चेक करी तो वह भी उपलब्ध ‌नहीं थी। दूसरा रिक्शा रोका‌। उसने कहा कि ₹200 लगेंगे लेकिन एक और सवारी भी साथ जाएगी। पहले उनको छोडूंगा फिर आपको छोड़ दूंगा। शम्स तैयार हो गए।
लॉ कॉलेज घाट पहुंचे तो वहां किसी का अता-पता नहीं था। सिर्फ बैनर लगा हुआ था । शम्स ने अपने कोच शशांक जी को फोन किया। उन्होंने कहा कि आप वही रुकिए हम लोग थोड़ी देर में आ रहे हैं। व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे शम्स बहुत थक चुके थे। वह आराम करना चाहते थे। पर वहां पर लेटने की कोई जगह नहीं थी।  9:00 बजते बजते आहिस्ता आहिस्ता कुछ खिलाड़ीयों का आना शुरू हुआ। एक खिलाड़ी है जो अपनी कार से आए थे और शम्स पहचानते थे ने उनकी तकलीफ को समझ कर उन्हें अपनी कार में आराम करने का सुझाव दिया। शम्स थोड़ी देर के लिए गाड़ी में सीट नीचे करके आराम करने लगे। तकरीबन एक डेढ़ घंटे आराम करने के बाद वह कुछ अच्छा महसूस करने लगे। तब तक सारे पार्टिसिपेंट आ चुके थे। बिहार स्विमिंग एसोसिएशन के सेक्रेटरी पांडे जी और दूसरे लोग सब आ चुके थे । उनके कोच शशांक जी ने उनकी  पहचान पांडे जी से कराई और बताया कि यह भी भाग लेना चाहते हैं।
सभी प्रतियोगियों को नाव में बैठाकर नदी के उस पार ले जाया गया। उन्हें नाव पर ले जाने के लिए उनके दोस्त जाबिर अंसारी और बिहार स्विमिंग एसोसिएशन के वॉलिंटियर्स ने काफी मदद की ।
जब शम्स प्रतियोगिता में तैर रहे थे तब उनके दोस्त जाबिर अपने मोबाइल से उसका पूरा वीडियो बना रहे थे।
शम्स ने दो किलोमीटर की दूरी 12 मिनट 23:00 सेकेंड में पूरी की। उन्हें बहुत खुशी हुई। वहां पर मौजूद सभी लोगों ने बधाई दी।
अब वापस पटना से गुरुग्राम जाने का सफर शुरू हुआ।  पटना स्टेशन पर टिकट खरीदने में ही बहुत दिक्कत हुई। पर वह खश थे कि जो चाहते थे वह हो गया। अब जब पेपर में आएगा और रिकॉर्ड बन जाएगा तो  उन्हें और भी खुशी होगी। इस बार शम्स ने इंडिया का ट्रैक सूट पहना हुआ था। जब लोगों ने देखा कि उन्होंने  इंडिया का ट्रैक सूट पहन रखा है तो उनसे पूछेने लगे कि क्या आप खिलाड़ी हैं। एक लड़के ने उनसे उनका नाम पूछकर अपने मोबाइल पर गूगल सर्च किया। उनके बारे में बहुत सी जानकारियां मिल गईं। उसने कहा आप तो बहुत फेमस हैं। आपका तो विकिपीडिया पेज भी है। सुन कर शम्स को बहुत खुशी हुई।
शम्स तक्लीफों से डरे नहीं। कष्ट सहकर भी पटना गए। वहाँ उन्होंने गंगा नदी में दो किलोमीटर की दूरी 12 मिनट 23 सेकेंड्स में पूरी करते हुए सबसे तेज पारा तैराक होने का खिताब हासिल किया। उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया।



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