मुझे उड़ान भरना ‌है

   

                 


मुझे उड़ान भरना ‌है

मुश्किलें ‌लाख‌ रोड़े अटकाएं पर जिसमें हौसला है उसे ‌कोई भी नहीं रोक सकता है। वह तो हर मुश्किल के लिए खुद एक चुनौती बन जाता है।‌
यह बात मोहम्मद शम्स आलम शेख़ पर एकदम खरी उतरती है। शम्स को भी कठिनाइयों ने घेरने का प्रयास किया। पर इस लड़ाके ने अपनी हिम्मत से उस घेरे को ध्वस्त कर दिया। उस घेरे से वह एक विजेता के रूप में बाहर निकल कर आए। शम्स एक पैरा तैराक, प्रेरक वक्ता और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के अधिकारों के पक्षधर हैं।
17 जुलाई 1986 को बिहार के मधुबनी में जन्मे शम्स आलम का संबंध किसानों के परिवार से है। पर शम्स के नाना  अपने समय के माने हुए पहलवान थे। अपने नाना को मिलने वाली शोहरत और इज्ज़त से प्रभावित होकर शम्स भी खेलों की तरफ आकर्षित हुए। वह अपने गांव रातौस में तैराकी किया करते थे।
छह साल की उम्र में शम्स पढ़ाई के सिलसिले में अपने भाई के साथ मुंबई चले गए। वहाँ जाने के बाद भी शम्स के अंदर का खिलाड़ी शांत नहीं हुआ। उन्होंने कराटे से अपना नाता जोड़ लिया। ‌कोच उमेश मुर्कर के निरीक्षण में इन्होंने विधिवत कराटे में प्रशिक्षण ‌लेना शुरू किया।
कराटे के खेल में मिली आरंभिक असफलताओं से हार माने बिना इन्होंने अपना प्रशिक्षण जारी रखा। नतीजा यह हुआ कि 2003 में शम्स ने अपनी पहली बाउट जीती और 2008 में कराटे में ब्लैक बेल्ट जीती। उसके बाद तो अगले सात सालों में उन्होंने कराटे में राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 54 मैडेल जीते।

अपने खेत के साथ ही शम्स ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। उन्होंने रिज़वी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद एक कंपनी में काम करना शुरू कर दिया।
सब कुछ सही चल रहा था। शम्स ने कराटे के क्षेत्र में ऊँचाइयां छूने की ठान ली थी। पर अचानक ही सबकुछ बदल गया। 2010 में इन्हें अपनी पीठ में दर्द का अनुभव होने लगा। डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने एमआरआई स्कैन कराने की सलाह दी।
जाँच में पता चला कि शम्स की रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर है। ऑपरेशन करके निकालना पड़ेगा। डॉक्टर ने आश्वासन दिया कि ऑपरेशन के बाद वह दस पंद्रह दिनों में पहले की तरह चलने लगेंगे।
शम्स का ऑपरेशन हुआ। पर पहली सर्जरी में ट्यूमर पूरी तरह से निकल नहीं पाया। अतः एक और सर्जरी हुई। उनका ट्यूमर तो निकल गया किंतु वह छाती के नीचे से पैरालाइज़ हो गए।
जिस शख्स का नाता बचपन से ही खेलों से रहा था वह अब हिलने डुलने को मजबूर था। यह एहसास कि अब बाकी की ज़िंदगी उन्हें व्हीलचेयर पर बिताना पड़ेगा बहुत कष्ट देने वाला था। कोई भी व्यक्ति इस परिस्थिति में टूट जाता। पर शम्स एक अलग ही मिट्टी के बने इंसान हैं। जब लोगों ने उनसे कहा कि अब वह कभी अपने पैरों पर चल नहीं सकेंगे। तो उन्होंने ठान लिया कि वह अब ऊँचा उड़ कर दिखाएंगे।
सकारात्मक सोंच रखने वाले शम्स ने अपनी इस परिस्थिति को ऊपर वाले द्वारा सजा मानने की जगह इसे अल्लाह द्वारा दिया गया एक दूसरा अवसर माना। उन्होंने तय कर लिया कि अपनी इस नई ईनिंग में वह पहले से भी बड़ा विजेता बन कर उभरेंगे।
उन्हें सलाह मिली कि वह तैरना शुरू करें। उनकी शारीरिक अवस्था में तैरना उनके लिए सबसे अच्छा व्यायाम होगा। अतः शम्स ने तैराकी करना आरंभ कर दिया। पर अभी तक इसे स्पोर्ट की तरह अपनाने के बारे में नहीं सोंचा था।
तैराकी को स्पोर्ट की तरह लेने का विचार इनके मन में 2011 में आया। शम्स पैराप्लाजिक फाउंडेशन के वार्षिक उत्सव में गए थे। वहाँ उनकी मुलाकात राजाराम घाग जी से हुई। इस मुलाकात ने उन्हें अपने जीवन का मकसद दे दिया।
राजाराम घाग जी ने वर्ष 1988 में एक अक्षम खिलाड़ी के तौर पर इंग्लैंड और फ्रांस के बीच स्थित इंग्लिश चैनल को तैर कर पार किया था। उनकी सफलता की कहानी ने शम्स के दिल में भी कुछ कर दिखाने की चिंगारी जगा दी।
26 नवंबर 2014 को नेवी दिवस पर मुंबई में समुद्र में तैराकी की प्रतियोगिता आयोजित हुई। शम्स ने इसमें एक अक्षम खिलाड़ी के रूप में भाग लिया। 6 कि.मी. की दूरी 1 घंटे 40 मिनट और 28 सेकेंड्स में तय करके शम्स ऐसा करने वाले पहले पैराप्लेजिक बने जो 100 फीसदी अक्षम थे। अपनी इस सफलता के कारण इनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गया।
इस तरह से एक पैरा तैराक का जन्म हुआ। तैराक शम्स के जीवन का सुनहरा लम्हा 2018 में आया जब इन्हें इंडोनेशिया के ज़कार्ता शहर में आयोजित एशियन पैरा खेलों में भाग लेने का मौका मिला।
2019 में नवंबर माह में शम्स ने पोलैंड के स्ज़ेसिन में आयोजित शीत कालीन पॉलिश ओपन स्विमिंग चैंपियनशिप में भाग लिया। यहाँ छह प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए उन्होंने 50 मी. बटरफ्लाई और 100 मी. में नए राष्ट्रीय रिकॉर्ड स्थापित किए।
दिसंबर 2019 में पटना लॉ कॉलेज घाट में आयोजित मिश्रीलाल मेमोरियल तैराकी प्रतियोगिता में भाग लेकर शम्स ने 2 कि.मी. की दूरी 12 मिनट और 23.04 सेकेंड्स में तय कर एक नया रिकॉर्ड बनाया। यह किसी पैरा प्लेजिक द्वारा दर्ज सबसे तेज समय हैं।

शम्स ना सिर्फ खुद ही अंधेरों को शिकस्त देकर उजाले में आए हैं बल्कि वह दूसरों के लिए एक मिसाल भी बने हैं। वह दूसरों को भी हार ना मान कर हिम्मत के साथ आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं।
वह एक प्रेरणादाई वक्ता हैं। वह अपने सकारात्मक भाषण के द्वारा शारीरिक अक्षमता से जूझ रहे लोगों को एक उत्साह और उम्मीद से भर देते हैं। वह लोगों को प्रोत्साहित करते हैं कि वो अपनी शारीरिक अक्षमता को बाधा मानकर हताश होकर ना बैठें। बल्कि अपने भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान कर उसे उभारें। अपनी प्रतिभा के दम पर लोगों के बीच अपनी पहचान बनाएं।
अपने ओजपूर्ण भाषणों, सोशल मीडिया पोस्ट और वीडियो के माध्यम से शम्स अब तक करीब 12 मिलियन से अधिक लोगों को प्रोत्साहित कर चुके हैं।
एक अच्छा वक्ता होने के साथ साथ शम्स शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के अधिकारों की आवाज़ भी उठाते हैं। शारीरिक अक्षमता से ग्रसित लोगों की सबसे बड़ी समस्या है अभिगम्यता। अधिकांश सार्वजनिक स्थानों, स्कूल और कॉलेजों में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के सुगम आवागमन की व्यवस्था नहीं है।
शम्स ने इस संबंध में सबसे पहली पहल उन्होंने सत्यभामा विश्वविद्यालय से की जहाँ से शम्स ने एमबीए किया। उन्होंने विश्वविद्यालय के अधिकारियों का ध्यान अक्षम छात्रों की इस समस्या की ओर आकर्षित किया। उनकी इस पहल के परिणाम स्वरूप आज विश्वविद्यालय के अक्षम छात्रों को ‌आने जाने में सुगमता हो गई है।
इसके अतिरिक्त ‌वह सरकार का ध्यान शारीरिक रूप से अक्षम खिलाड़ियों की ‌समस्याओं की तरफ खींचने का प्रयास भी कर रहे हैं। उनकी खेल मंत्रालय से अपील है कि अक्षम खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। केवल बातें ना हों बल्कि किए गए वादे ‌पूरे भी हों।
शारीरिक रूप से ‌अक्षम लोगों को खेलों के प्रति आकर्षित करने के लिए वह स्वयं भी व्यक्तिगत रूप से प्रयास कर रहे हैं। इन्होंने मुंबई में ‌पैरा स्पोर्ट्स एसोसिएशन नामक‌ संस्था की स्थापना की है। इस संस्था द्वारा कई पैरा चैंपियनों का निर्माण हो रहा है।
अपने ‌नाम को सार्थक करते हुए शम्स आज सारे अंधेरों को चीर कर सफलता के आसमान पर चमक रहे हैं। उनकी इस यात्रा में उनके परिवार का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
उनका समाज को एक ही संदेश है-
चाहें कितनी मुश्किलें आएं पर खुद पर से भरोसा कभी ना खोएं। मुश्किलों के सामने डट कर खड़े हो जाइए। वो खुद हार मान लेंगी। अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आगे बढ़ते रहिए।

उनकी सोंच इस शेर में झलकती है-
मैं अपने फ़न की बुलंदी से काम ले लूँगा
मुझे मकाम ना दो खुद मकाम ले लूँगा

शम्स 20 से 28 फरवरी 2020 थाइलैंड में आयोजित होने वाले IWAS World Games में भाग लेने जा रहे हैं। समस्त देशवासियों की तरफ से उन्हें शुभकामनाएं।

         

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