सेवा ही परम धर्म है इनका

 





सेवा ही परम धर्म है


सड़क पर चलते हुए कई बार हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो यूं ही सड़कों पर घूमते रहते हैं। जो मिल गया खा लिया। किसी भी जगह लेट या बैठ जाते हैं। इन लोगों के बाल बेतरतीब बढ़े हुए एवं उलझे रहते हैं। तन पर मैले कुचैले कपड़े होते हैं।‌ ना नहाने के कारण शरीर पर मैल की परतें जमा होती हैं। कई बार शरीर पर घाव होते हैं जिनमें कीड़े पड़े होते हैं। 

ऐसे सब लोगों को हम पागल कह कर दुत्कार देते हैं। अपने आसपास भी भटकने नहीं देते। हमारे लिए इनका अस्तित्व समाज पर एक भार से अधिक कुछ नहीं होता है। 

पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की सेवा ही अपना सबसे बड़ा धर्म समझते हैं। डॉ. संजय कुमार शर्मा ऐसे ही एक व्यक्ति हैं। जो मानव सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म मानते हुए विगत 28 वर्षों से मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के मसीहा बने हुए हैं। 

उनका ना तो कोई NGO है और ना ही इन्हें कोई सरकारी सहायता प्राप्त है। यह सेवा का कार्य डॉ. संजय कुमार शर्मा अपने खर्च पर करते हैं। 

सड़क पर भटकते मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को खाना देना, दवाइयां देना, उनके कपड़े बदलवाना, नहलाना, उनके घावों की सफाई करना यह सब काम डॉ. संजय कुमार शर्मा अपनी इच्छा से बिना किसी संस्था की सहायता लिए करते हैं। 

पर यह कार्य आसान नहीं है। कई मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग गंदगी, मल मूत्र आदि से सने होते हैं। उनके घावों से असहनीय दुर्गंध आती है। उनके पास खड़े रहना कठिन होता है। यही नहीं ऐसे लोगों को नहलाने और कपड़े बदलवाने, घाव साफ करने जैसे कामों के लिए मनना एक चुनौतीपूर्ण काम है।‌ उनके नजदीक जाने पर ऐसे कई लोग उग्र हो जाते हैं। मारने दौड़ते हैं, गालियां देते हैं, सामान फेंक कर मारते हैं। ऐसे में अपनी रक्षा करते हुए उनकी सेवा करना बड़ा कठिन होता है।

ऐसा ही एक किस्सा है जो डॉ. संजय कुमार शर्मा की कठिनाईयों को सही प्रकार से समझा सकता है। इन्हें सड़क पर एक लड़का दिखा जो मानसिक रूप से विक्षिप्त था। उसके हाथ में एक घाव था जिसमें कीड़े पड़े हुए थे। उसके शरीर पर मैले कुचैले कपड़े थे। दाढ़ी और बाल बेतरतीब बढ़े हुए थे। डॉ. संजय कुमार शर्मा उसकी सेवा करना चाहते थे। करीब एक महीने तक वह बड़े धैर्यपूर्वक उसका प्रतिदिन पीछा करते थे। अंततः गत 28 जून 2020 को उनका धैर्य रंग लाया। नगरपालिका के सहयोग से उन्होंने बड़ी मुश्किल से उसके शरीर से कपड़े उतरवाए। कुल पंद्रह जोड़ी कपड़े थे। उन्हें नहलाया, घाव साफ किया, बाल कटवाए, दाढ़ी बनवाई। उस लड़के की पहचान के बारे में पता किया। दसवीं कक्षा पास उस लड़के का नाम गोपाल गोस्वामी है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि कोरोना के संकट काल में ऐसे रोगियों की मदद करना और भी कठिन हो जाता है।

समाज में कई ऐसे ही मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग हैं। कई बार परिवार वाले उनसे पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें घर से दूर ले जाकर छोड़ आते हैं। कुछ ऐसे मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग हैं जिनके परिवार वाले सालों से उन्हें जंजीरों में बाँध कर रखते हैं। उनका उचित इलाज नहीं कराते हैं। इसका कारण है कि उन्हें सही प्रक्रिया का ज्ञान नहीं होता। दवाइयां बहुत महंगी होती हैं। अंधविश्वास एवं सामाजिक उपेक्षा भी इसका कारण होते हैं।

जब भी डॉ. संजय कुमार शर्मा को ऐसे किसी रोगी के बारे में पता चलता है वह उसकी सहायता के लिए तैयार हो जाते हैं। पहले डॉ. संजय कुमार शर्मा ऐसे परिवारों में जाते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति का जायजा लेते हैं। यदि वह आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो उन्हें दवाएं का खर्च उठाने के लिए कहते हैं। जो परिवार गरीब हैं और अपने परिजनों का इलाज नहीं करा सकते। उनके इलाज की व्यवस्था करते हैं। 

कुछ मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग इस अवस्था में पहुंँच जाते हैं कि वह हिंसक हो जाते हैं। अपने आस पास आने वाले लोगों को चोट पहुंचाते हैं। परिवार के लोगों के लिए इन्हें बांध कर रखना अनिवार्य हो जाता है। ऐसे रोगियों को आरोग्यशाला पहुंँचाना आवश्यक होता है।

किसी भी मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति को इलाज के लिए आरोग्यशाला भेजने के लिए न्यायालय के आदेश की आवश्यकता होती है। मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के अंतर्गत पास के थाना प्रभारी के पास जाकर उसे इस बात के लिए मनाते हैं कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति का मेडिकल करा कर यह प्रमाणित करें कि उसका आरोग्यशाला में जाना अनिवार्य है। उसका समाज में रहना अन्य लोगों के लिए खतरनाक है। तत्पश्चात मानसिक विक्षिप्त को न्यायालय में प्रस्तुत करके यह बात साबित की जाती है कि व्यक्ति अपनी मानसिक अवस्था के कारण हिंसक हो जाता है। इससे समाज के अन्य लोगों को असुविधा हो सकती है। तत्पश्चात उसे आरोग्यशाला भेजा जाता है। 

डॉ. संजय कुमार शर्मा अब तक 500 से भी अधिक लोगों को आरोग्यशाला भेज चुके हैं। इनमें से करीब 480 लोग ठीक होकर वापस आ चुके हैं। 

डॉ. संजय कुमार शर्मा का जन्म 2 अगस्त 1968 को मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में हुआ था। इनके पिता पेशे से एक शिक्षक थे। परिवार बहुत निर्धन था। तीन बहनों में अकेले भाई संजय को अपने बचपन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। गरीबों की कठिनाइयों से परिचित होने के कारण ही उनके मन में लोगों के प्रति करुणा की भावना थी।

बचपन में अक्सर वह देखते थे कि समाज में उन लोगों को जो मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं बहुत उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। लोग उन्हें पागल कह कर दुत्कारते हैं। बचपन में अक्सर व अन्य बच्चों को ऐसे लोगों को परेशान करते हुए देखते तो उनके मन में पीड़ा होती थी। उस समय भी वह अपनी सामर्थ्य अनुसार ऐसे लोगों की सहायता किया करते थे। तब से सेवा का भाव उनके मन में जागृत हो गया।

संजय एक शिक्षक बनना चाहते थे। अतः उन्होंने गणित विषय से एमएससी और फिर बीएड किया। परंतु कुछ कारणों से शिक्षक नहीं बन सके। उन्होंने एलएलबी पास कर ली। इनके पास आयुर्वेदिक पद्धति से चिकित्सा का ज्ञान भी था। न्यायालय के पास अपनी फोटो कॉपी की एक दुकान शुरू कर दी। वहाँ इनके देखने में आया कि कई मानसिक रूप से रोगी व्यक्ति सड़क पर घूमते रहते हैं। इन्होंने ऐसे मानसिक विक्षिप्त लोगों की यथासंभव सहायता आरंभ कर दी। क्योंकी इन्होंने क़ानून की शिक्षा ले रखी थी तो इन्हें पता चला कि मानसिक रोगी को मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती कराने के लिए एक खास प्रक्रिया होती है। जिसके तहत उसका मेडिकल कराके रोगी को मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना होता है। मजिस्ट्रेट का आदेश होने पर ही मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को मेंटल हॉस्पिटल भेजा जा सकता है।

डॉ. संजय कुमार शर्मा ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में ऐसे शिविरों की व्यवस्था की जहाँ मानसिक रूप से विक्षिप्त रोगियों के घरवाले उन्हें लेकर आते थे। डॉ संजय कुमार शर्मा उनके उचित इलाज की व्यवस्था कराते। इस शिविर के जरिए कई लोगों को बहुत फायदा हुआ। परंतु कुछ अपरिहार्य कारणों से इस सिविल को बंद करा दिया गया। 

डॉ संजय कुमार शर्मा प्रशासन को भी अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं। हर मंगलवार को मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के परिजन जनसुनवाई कार्यक्रम में सहायता के लिए जिला कलक्टर को प्रार्थना पत्र देते हैं। उन सभी से प्राप्त प्रार्थना पत्रों के आधार पर समाज सेवक के रूप में डॉ. शर्मा कलक्टर साहब की मदद करते हैं।

वर्तमान में बदलते सामाजिक परिवेश में मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ‌ इसका कारण है समाज में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, किसी भी कीमत पर जीतने की चाह, भौतिक वस्तुओं के लिए लगाव, गिरते सामाजिक मूल्य एवं रिश्तो में दरारें। इसके अतिरिक्त हमारी जीवन शैली में भी बहुत बदलाव आ गया है। कम व्यायाम, असमय खाना पीना, दिनभर चिंता में रहना इत्यादि कई तरीके के रोगों को जन्म देते हैं। इनके कारण अवसाद एवं मानसिक विक्षिप्तता के केस दिन पर दिन बना रहे हैं।

आयुर्वेद का ज्ञान रखने वाले डॉ. संजय कुमार शर्मा लोगों को सही खानपान सही रहन सहन एवं भौतिक वस्तुओं के प्रति अधिक लगाव ना रखने की सलाह देते हैं। वह कई जगह आख्यान देने भी जाते हैं। उन आख्यानों के जरिए वह लोगों से सदैव प्रसन्न रहने व सकारात्मकता बनाए रखने का सुझाव देते हैं। 

डॉ संजय कुमार शर्मा का मानना है कि जिस रफ्तार से मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है उसके अनुपात में हमारे देश में मनोचिकित्सकों की बहुत कमी है। सरकार को इस विषय में उचित कदम उठाने चाहिए। 

मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की सेवा को ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य मानने वाले डॉ. संजय कुमार शर्मा का कहना है कि लोग ऐसे कामों में सही प्रकार से सहायता प्रदान नहीं करते हैं। कुछ लोग उनके कार्य का उपहास उड़ाते हैं तो कुछ लोग इसे ईश्वर की सेवा मानते हैं। परंतु सही प्रकार से सहायता करने के लिए बहुत कम लोग आगे आते हैं।

परंतु डॉ. संजय कुमार शर्मा निस्वार्थ भाव से अपना काम चुपचाप कर रहे हैं। उनकी निस्वार्थ सेवा के कारण उन्हें कुछ पुरस्कार भी मिले हैं।‌ उन्हें कुल मिलाकर 52 पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इन पुरस्कारों में कुछ प्रमुख पुरस्कारों की सूची निम्न प्रकार है

भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम आजाद द्वारा इन्हें बधाई संदेश दिया गया था। 

माननीय न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।  

2009 में गाडफ्रे ब्रेवरी अवार्ड मिला था। 

2010 में महर्षि दधीचि सम्मान एवं बुंदेलखंड गौरव सम्मान।

2011 में दैनिक भास्कर कार्यालय भोपाल द्वारा जल अवार्ड से सम्मानित किया गया।

2008 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश शासन के मंत्री श्री गोपाल भार्गव द्वारा सम्मानित किया गया।

मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ. संजय कुमार शर्मा का कहना है कि बहुत से लोग मानसिक रोगों को छिपाते हैं। क्योंकी ऐसे लोगों को लोग सहानुभूति ना देकर उनका उपहास करते हैं। 

डॉ. संजय कुमार शर्मा के इस कार्य में अपनी पत्नी वा परिवार का भी पूरा सहयोग मिलता है। अपने इस महान कार्य से डॉ संजय कुमार शर्मा अब तक बहुत सारे मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के जीवन में नई उम्मीद की रोशनी ला चुके हैं।


https://youtu.be/F3JX4YMiWL0


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

यादें

सहिष्णुता और भारत