अवकाश ग्रहण की उम्र में नया आरंभ





           




अवकाश ग्रहण की उम्र में नया आरंभ

अमूमन 60 साल की उम्र अपने कार्यक्षेत्र से अवकाश ग्रहण करने की मानी जाती है। लेकिन 65 साल की उम्र में एक नए क्षेत्र में कदम रखना सचमुच साहस का काम है। परंतु एस भाग्यम शर्मा जी ने ना सिर्फ यह साहस दिखाया बल्कि अपने चुने हुए क्षेत्र में अपनी एक पहचान भी बनाई।
साहित्य के क्षेत्र में एस भाग्यम शर्मा जी एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उनका जन्म 18 मार्च 1944 को तमिलनाडु के ऊटकमंड में हुआ था। उन्हें बचपन से ही साहित्य में रुचि थी। अपनी पढ़ाई के साथ साथ उन्हें जो उपन्यास व कहानी मिलती थी पढ़ लेती थीं। विवाह के बाद ससुराल में भी उन्हें पढ़ने का माहौल मिला। उनके पति स्वयं भी एक लेखक थे। उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था। जिसके कारण घर में पुस्तकों के साथ तत्कालीन कई प्रसिद्ध पत्रिकाएं भी आती थीं। एस भाग्यम शर्मा जी भी उन्हें पढ़ती रहती थीं। इस तरह एक पाठिका के तौर पर उनका साहित्य से गहरा जुड़ाव था। 
पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के साथ साथ एस भाग्यम शर्मा जी ने 28 साल तक शिक्षण का कार्य किया। अवकाश ग्रहण करने के बाद एस भाग्यम शर्मा जी के मन में अक्सर आता था कि उन्हें साहित्य के क्षेत्र में कुछ करना चाहिए। उनकी पहचान में जो लेखिकाएं थीं उन्हें देखकर उनके मन में आता था कि वह बहुत खास हैं। उनके अंदर साहित्य सृजन की क्षमता है। वह सोचती थीं कि क्यों ना साहित्य के अध्ययन से जो लाभ मिला है उसका उपयोग लिखने में करें। कई बार लिखने का मन किया पर एक संकोच उन्हें रोक देता था। पर उनके कुछ आत्मीय जनों ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कुछ कहानियां लिखीं और प्रकाशन हेतु भेजा। उनकी लिखी कहानियां प्रकाशित हो गईं। इसने एस भाग्यम शर्मा जी को और अधिक लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उसके बाद कई कहानियां लिखीं।
एस भाग्यम शर्मा जी साहित्य सृजन में व्यस्त थीं। उसी बीच उनकी मुलाकात प्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार दुष्यंत जी से हुई। उन्होंने सुझाव दिया कि उन्हें अनुवाद का कार्य करना चाहिए। उन्होंने दुष्यंत जी के सुझाव पर विचार किया। उन्हें महसूस हुआ कि यह भी एक साहित्य सेवा है। जब एक भाषा के साहित्य का दूसरी भाषा में अनुवाद किया जाता है तो उसके माध्यम से दो क्षेत्रों के लोग एक दूसरे के नज़दीक आते हैं‌। अनूदित साहित्य एक पुल की भांति दो विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों को जोड़ता है।
एस भाग्यम शर्मा जी का जन्म तमिलनाडु में हुआ था। तमिल उनकी मातृभाषा थी। राजस्थान में विवाह होने के कारण वह हिंदी भाषा भी जानती थीं। तमिल संस्कृति का परिचय उत्तर भारत के लोगों से कराने के उद्देश्य से उन्होंने एक तमिल कहानी का हिंदी में अनुवाद किया। इस कहानी का नाम 'आम का पेड़' था। यह एक माँ की कहानी थी। उसके बाद एस भाग्यम शर्मा जी ने कई तमिल रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। अपने अनुवाद कार्य से उन्हें बहुत अधिक प्रसिद्धि और सम्मान मिला।
उन्होंने एस राजगोपालाचारी जी की बाल कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया। इन अनूदित कहानियों को पत्रिका प्रकाशन द्वारा 2012 में प्रकाशित किया गया। 2013 में उनके द्वारा तमिल से हिंदी में अनुवाद की गई कहानियों को संग्रह रूप में साहित्यकार प्रकाशन द्वारा 'प्रतिनिधि दक्षिण की कहानियां' नाम से प्रकाशित किया गया। इसके अलावा विभिन्न समकालीन तमिल लेखकों की कहानियों का अनुवाद ‘समकालीन तमिल प्रतिनिधि कहानियां' के नाम से संकलन रूप में का दीपक पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स द्वारा प्रकाशित किया गया।
कहानियों के अलावा कई प्रसिद्ध उपन्यासकारों की रचनाओं का भी एस भाग्यम शर्मा जी द्वारा हिंदी में अनुवाद किया गया। तमिल की प्रसिद्ध लेखिका आर. चूड़ामनी के उपन्यास ‘इडरशुडर’ का हिंदी में दीप शिखा के नाम से अनुवाद किया। यह उपन्यास ई-बुक के रूप में मातृभारती वेबसाइट पर धारावाहिक रूप से 2019 में प्रकाशित की गई। इसी साल मातृभारती पर सुब्रभारतीमणियन के द्वारा लिखित तमिल उपन्यास ‘मुरीवू’ का हिन्दी में अनुवाद ‘टूटन’ के नाम से प्रकाशित हुआ।
तमिल की प्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार वासंती के प्रसिद्ध उपन्यास 'बंद खिड़कियां' का अनुवाद एस भाग्यम शर्मा जी द्वारा किया गया। इस उपन्यास को इंडिया नेटवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड ने 2021 प्रकाशित किया है।
एस भाग्यम शर्मा जी ने अब तक दस तमिल उपन्यासों का हिंदी में अनुवाद किया है। 

साहित्य सेवा के लिए एस भाग्यम शर्मा जी को कई सम्मानों से नवाज़ा गया है। इनमें प्रमुख हैं,
राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान जयपुर द्वारा सन 2014 में वेणु-सम्मान 
साहित्य समर्था त्रैमासिक साहित्य पत्रिका, जयपुर, राजस्थान द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीय डॉ. कुमुद टिक्कू लघुकथा प्रतियोगिता 2015’ में श्रेष्ठ लघुकथा पुरस्कार
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित एक दिवसीय राजस्थान लेखिका सम्मेलन 2017 में ‘महाश्वेता देवी सम्मान’ 
25 मार्च़ 2017 को जयपुर में आयोजित राजस्थान कवि सम्मेलन, उत्कर्ष काव्य संग्रह (द्वितीय) के लोकार्पण एवं साहित्यकार सम्मान समारोह के शुभ अवसर पर साहित्य सेवाओं के लिए 'साहित्य गौरव सम्मान’ 
दैनिक भास्कर द्वारा भास्कर वुमेन ऑफ द इयर सम्मान उन्हें राजस्थान की तत्तकालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया जी द्वारा दिया गया।
11 मार्च 2018 को ‘‘स्पंदन स्वयं सिद्धा सम्मान 2018’’ को सम्मान
अनूदित पुस्तक ‘‘झूला’’ को प्रथम पुरस्कार 
‘अखिल हिन्दी साहित्य सभा (अहिसास) नाशिक’ द्वारा ‘‘साहित्य शिरोमणि’ सम्मान 
2019 में आर. चूड़ामणि की ‘इडरशुडर’ उपन्यास का 'दीप शिखा' नाम से अनुवाद किया। इसके लिए कमला गोइन्का फाउंडेशन बेंगलुरु से 'बालकृष्ण गोइन्का अनूदित पुरस्कार’

एस भाग्यम शर्मा जी द्वारा रचित पुस्तकें
नीम का पेड़ (कहानी संग्रह) 2016
बेटी का पत्र 2019

एस भाग्यम शर्मा जी अक्सर साहित्य और महिलाओं के विषय पर विभिन्न मंचों से अपनी बात कहती रहती हैं। उनका कहना है कि साहित्य के माध्यम से समाज में व्याप्त समस्याओं और कुरीतियों का चित्रण किया जाना चाहिए। साहित्य वह आईना है जिसमें हम समाज की वास्तविक छवि देख सकते हैं।

निम्न लिंक पर बंद खिड़कियां उपन्यास पर परिचर्चा सुन सकते हैं 👇

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