तिनका तिनका तिहाड़

तिनका तिनका तिहाड़
जब कभी जेल का जि़क्र आता है तो जे़हन में सींखचों के पीछे कै़द खूंखार मुजरिमों की तस्वीर उभरती है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि जेल की चारदीवारी के पीछे भी ज़िंदगी बसती है।  जेल में बंद कै़दियों के ह्रदय में भी भावनाओं का उफान उठता है।  सींखचों के पीछे से झांकती आंखों में भी सपने पलते हैं। 
जेल में रहने वाला हर शख़्स खूंखार मुजरिम नहीं होता।  उनमें से अधिकांश हालातों का शिकार होकर जुर्म कर बैठते हैं।  बाहर की दुनिया में रहने वाले हम लोग अपने दृष्टिकोंण से उनका आंकलन करते हैं।  जब बात महिला कैदियों की आती है तो हमारी आलोचना और तीव्र हो जाती है। हम महात्मा गांधी की वह सीख भूल जाते हैं 'पाप से घृणा करो पापी से नहीं' । उसी प्रकार हमें अपराधियों के स्थान पर अपराध से किनारा करना चाहिए। 
आवश्यक्ता है उनके जीवन में झांक कर देखने की।  उनके सुख दुख को समझने की।  एसा ही एक प्रयास किया है तिहाड़ जेल की महानिदेशक विमला मेहरा और संवेदनशील लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता वर्तिका नंदा ने। इन्होंने तिहाड़ जेल की महिला कैदियों के दिल में झांकने का प्रयास किया. परिणाम स्वरूप जो सामने आया वह है तिनका तिनका पहाड़।  
यह एक अनूठी पुस्तक है जिसमें महिला कैदियों द्वारा लिखी कविताओं का संग्रह है।  इन कविताओं के माध्यम से उन महिलाओं ने अपनी भावनाओं अपने सपनों अपनी विवशता घुटन आशाओं और निराशाओं को व्यक्त किया है। 

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