नंगे पांव सफलता के पथ पर

नंगे पांव सफलता के पथ पर 


डॉ. सूर्य बाली का कहना है कि वो रोज़ नंगे पांव 11km. पैदल चल कर स्कूल जाते थे।  जौनपुर उत्तर प्रदेश के बैरिली गाँव में गोंड जनजाति में जन्मे डॉ. सूर्य बाली अपने गाँव के प्रथम डॉक्टर हैं।  उनका डॉक्टर बनने का सफर संर्घषों से भरा है।  
इनके पिता एक बंधुआ मज़दूर थे। उस जीवन से तंग आकर वह घर छोड़कर चले गए।  उनकी माँ लोगों के घरों में सफाई करना, खाना बनना, बर्तन धोने का काम करती थीं।  जब तक उनके पिता नहीं लौटे तब तक उनकी छोटी सी कमाई से ही घर चलता था।  किंतु उनमें पढ़ने की ललक थी. गाँव की प्राथमिक पाठशाला में वह पढ़ने जाते थे।  फीस तो नहीं पड़ती थी किंतु पुस्तकों के लिए वह बेर तथा अन्य फलों को एकत्रित कर उन्हें शहर के लोगों से पुस्तकों से बदल लेते थे।  किंतु कुछ शिक्षकों का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नहीं था। उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाय वह उन्हें यह कह कर हतोत्साहित करने का प्रयास करते कि पढ़ लिख कर क्या करोग तुम्हें तो अपने माँ बाप की तरह काम करना चाहिए।  किंतु पढा़ई के प्रति उनकी लगन के कारण वह इन बातों पर ध्यान नहीं देते थे।  लेकिन ताने और अपमान कम नहीं हुए।  अतः उन्हें गाँव से दूर सरसी के मिडिल स्कूल में दाख़िला लेना पडा़।  स्कूल जाने के लिए वह नंगे पांव 11km. पैदल जाते थे।  अपनी पढा़ई के ख़र्च के लिए वह स्कूल के बाद साइकिल का पंचर बनाने का कार्य करते थे।  बरसात के मौसम में अक्सर वह स्कूल नहीं जा पाते थे फिर भी कक्षा आठ की परीक्षा में उन्हें प्रथम स्थान मिला।  इसने इनके हौंसले को और बढा़ दिया। 
जब वह 7 वर्ष के थे उनके छोटे भाई को सही इलाज न मिलने के कारण प्राण गवांने पड़े।  सही इलाज न करा सकने का जो दर्द उनकी माँ को था वह कभी भी उनके दिमाग से नहीं गया।  अतः 12th के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला किया।  उन्होंने बहुत प्रयास किया कि Medical entrance की तैयारी के लिए पैसे जुटा सकें।  इस प्रयास में वह दर दर भटके किंतु कुछ नहीं हुआ।  उनके भाई ने बडी़ मुश्किल से 3000 रुपये जमा किए।  किंतु यह राशि कोचिंग की फीस पर ही ख़र्च हो गई।  रहने खाने तथा अन्य कामों के लिए उनके पास पैसे नहीं थे।  निराश होकर उन्होंने अपना सपना त्याग कर Bsc करने का विचार किया किंतु तभी उस Hostel के warden  जिसमें वह रहते थे उनकी लगन को देखकर मदद को आगे आए।  उन्होंने न सिर्फ मुफ्त में रहने दिया बल्की फार्म इत्यादि भरने के लिए पैसे भी दिए।  Entrance exam उत्तीर्ण कर इन्होंने Motilal Nehru medical college इलहाबाद में दाखिला लिया।  किंतु संघर्ष ने यहाँ भी उनका पीछा नहीं छोडा़।  अपने कपडो़ं के कारण उन्हें सहपाठियों का उपहास सहना पडा़।  अपने व्ययों के लिए उन्होंने समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में लिखना आरंभ किया. उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने MBBS पूरा कर लिया। 
उन्हें Florida university से Master's in Health management करने हेतु IFP fellowship प्राप्त हुई। 
उनका मानना है कि डॉक्टरी एक पवित्र पेशा है।  इसका प्रयोग मानव सेवा के लिए होना चाहिए ना कि धन कमाने हेतु। 

उन्होंने Global health development mission नाम से एक NGO की स्थापना की।  लोगों में जागरूकता लाने हेतु वह बीमारियों के विषय में उपलब्ध दानकारियों को स्थानीय भाषा में अनुवादित करते हैं।  उनका मानना है कि लोगों को उनकी भाषा में अधिक आसानी से सिखाया जा सकता है।  वह समाज के पिछडे़ वर्ग के लिए काम करते हैं।  स्वास्थ सुविधाओं में सुधार लाने तथा लागत को कम करने के लिए किए गए सोध के लिए AIIMS की तरफ से National Memorial Award से नवाजा़ गया। 2010 मे उन्हें Who is Who in the world चुना गया। 

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