शिक्षा की मशाल

शिक्षा की मशाल ही समाज में व्याप्त अज्ञानता के अंधकार को मिटा कर रूढ़ियों की बेड़ियों से इसे मुक्त करा सकती है. यदि यह मशाल लड़कियों ने थाम रखी हो तो यह और भी शुभ संकेत है. 



वाराणसी से तकरीबन 15 Km. दूर स्थित सोजोई गांव ऐसी ही एक मिसाल पेश कर रहा है.  मुस्लिम बाहुल यह गांव बुनकरों का है. इस गांव की तीन बेटियां गांव में शिक्षा का उजाला फैला रही हैं. तबस्सुम तरन्नुम और रूबीना बानो. शिक्षा का महत्व समझते हुए इन्होंने तमाम मुसीबतों को झेलते हुए स्वयं को शिक्षित बनाया. इस काम में परिवार वालों तथा अन्य लोगों ने इनकी सहायता की. किंतु स्वयं को शिक्षित कर लेना ही इनका मकसद नहीं था. तीनों चाहती थीं कि गांव में शिक्षा को लेकर जागरूकता आए तथा आने वाली पीढ़ी निरक्षर ना रहे. 
गांव में स्कूल छोड़ देने वालों की संख्या अधिक थी. लड़कियों की शिक्षा पर कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता था. तीनों लड़कियां इस माहौल को बदलना चाहती थीं. तभी Human Welfare Association HWA   नामक NGO इसी उद्देश्य से इनके गांव में आया. तीनों उसकी Volunteer बन गईं. गांव के बंद पड़े मदरसे में.बच्चों की शिक्षा का प्रबंध किया गया. 
आरंभ में बच्चों को लाना एक कठिन कार्य था. तीनों सहेलियां घर घर जाकर लोगों को अपने बच्चों को भेजने के लिए मनातीं. खासकर लड़कियों की शिक्षा के लिए. उन्हें कई प्रकार की नसीहतों तथा विरोध का सामना करना पड़ा. लड़कियों को शिक्षा की तरफ मोड़ने तथा उनके परिवार को राज़ी करने का इन्होंने नायाब तरीका निकाला. इन्होंने एक सिलाई कढ़ाई.केंद्र खोला. यहाँ इन्हें सिलाई कढ़ाई के साथ साथ हिंदी अंग्रेजी तथा गणित पढ़ाई जाती थी. इसे इन्होंने तरक्की केंद्र का नाम दिया. इसका मकसद लड़कियों  को आगे की शिक्षा के लिए तैयार करना था.


स्वंय भी इन लड़कियों ने तरक्की की राह पर चलते हुए ITI में दाख़िला लिया. तमाम मसरूफियतों के बाद भी इन्होंने अपने मकसद को.नहीं छोड़ा. आज इन्हें खुशी है कि गांव की कई औरतें अब साक्षर हो गई हैं. 
शिक्षा की मशाल उठाए यह तीन लड़कियां समाज को उज्वल भविष्य की ओर ले जा रही हैं.




https://www.youtube.com/watch?v=zzM3d07DcSU

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